इस बार गुरुवार 10 अक्टूबर को सिरहासार भवन में मुरिया दरबार लगेगा। राजशाही के दौर में शुरू हुई इस परंपरा में दशहरा में शामिल होने आए मांझी, चालकी, मेंबर, मेंबरीन, कोटवार, नाईक, पाईक व ग्रामीण प्रतिनिधियों की बात सीधे राजपरिवार के लोग सुनते थे और उनका निराकरण होता था। आजादी के बाद यह पंरपरा जारी तो रही, लेकिन राजपरिवार के बजाए जनप्रतिनिधि जनता की समस्या सुनते रहे हैं।
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सीएम की अगुवाई में सज रहा दरबारपिछले 8 साल से मुख्यमंत्री (Chhattisgarh CM) की अगुवाई में दरबार सजता आया है। इसमें वे समस्या सुनने, समाधान करने के साथ ही कई घोषणाएं किया करते हैं। 1965 के पहले बस्तर महाराजा प्रवीरचंद्र भंजदेव इसमें शामिल होते थे।
सिरहासार में सजता है मुरिया दरबार
बस्तर रियासत अपने राज्य को कारगर ढंग से संचालित करने के लिए परगना बनाकर उनकी जवाबदेही के लिए मूल आदिवासियों से मांझी (मुखिया) की नियुक्ति की गई थी। यह मांझी अपने क्षेत्र की समस्याएं राजा तक पहुंचाया करते थे। वहीं राजा के आदेश से ग्रामीणों को अवगत भी कराते थे। बताया जाता है कि मुरिया दरबार में राजा द्वारा निर्धारित 80 परगाना के मांझी अपने क्षेत्र की समस्याओं से पहले राजा अब सरकार को अवगत कराते है।
बस्तर रियासत अपने राज्य को कारगर ढंग से संचालित करने के लिए परगना बनाकर उनकी जवाबदेही के लिए मूल आदिवासियों से मांझी (मुखिया) की नियुक्ति की गई थी। यह मांझी अपने क्षेत्र की समस्याएं राजा तक पहुंचाया करते थे। वहीं राजा के आदेश से ग्रामीणों को अवगत भी कराते थे। बताया जाता है कि मुरिया दरबार में राजा द्वारा निर्धारित 80 परगाना के मांझी अपने क्षेत्र की समस्याओं से पहले राजा अब सरकार को अवगत कराते है।
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