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जंगल व जंगली जंतुओं के साथ सह अस्तित्व करता है प्रभावित: बस्तरिया संस्कृति को लेकर ब्रिटेन, फ्रांस, इटली व रूस के कई टीम हाल ही में बस्तर पहुंचे इनमें फ्रांस से आए क्लेयर और उनकी माता फ्रेडरिक ने बताया कि उसे यहां की आदिवासियों द्वारा जंगल और जंगली जीव जंतुओं के साथ रह कर सह अस्तित्व के साथ रहन सहन खासा प्रभावित करता है। बस्तर की कल्चर, खानपान, रहन सहन, रीति रिवाज अदभुत है। यहां पर हर मौसम में खानपान का अपना अलग ही महत्व हो जो इन्हें सबसे अलग बनाता है।
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होम स्टे की कमाई से कुपोषित बच्चों की मदद बस्तर में स्टे होम की शुरूआत करने वाले शकील रिजवी व उनके टीम के द्वारा बस्तर ज़िले के छोटेकवाली, चिलकुटी, गुड़ियापदर, मिलकुलवाड़ा, पुसपाल, व नेशनल पार्क में होमस्टे चलाया जा रहा हैं। इसके अतिरिक्त कोंडागाँव, नारायणपुर, केशकाल, कांकेर, दंतेवाड़ा, सुकमा में भी होमस्टे संचालित हैं, जहां देशी एवं विदेशी पर्यटक ग्राम स्तर की इस सुविधा का लाभ उठा रहे हैं। शकील रिजवी ने बताया कि पर्यटन व्यवसाय से हुए कमाई का लगभग 20 प्रतिशत आय को कुपोषित बच्चों के स्वास्थ्य व उनके उचित देखभाल के लिए किया जाता है। टीम का उद्देश्य बस्तर को कुपोषण से मुक्त करना है।
होम स्टे संचालित करने वाले शकील रिजवी के मुताबिक बस्तर में देश विदेश से आने वाले अधिकांश पर्यटकों को यहां के पारंपरिक सिरहा गुनिया और मौसमी खानपान सबसे अधिक प्रभावित करता है। इसके अलावा बस्तर का नैसर्गकि सौंदर्य, संस्कृति, कला, नृत्य और जीवन शैली खूब पसंद कर रहे हैं। यहां अधिकांश विदेशी पर्यटक बस्तर के आदिवासियों के साथ घुल मिलकर यहां की जीवन शैली को अपनाने की कोशिश में रहते हैं।
बस्तर के भीतरी इलाके के गांवों में इन दिनों स्टे होम की व्यवस्था से प्रवासी विदेशियों को बस्तर को करीब से जानने और देखने में मदद मिल रही है। पर्यटन को बढ़ावा देने प्रशासन और राष्ट्रीय उद्यान प्रबंधन की संयुक्त प्रयास से गांवों में स्टे होम व्यवस्था बढ़ी है। गांवों में घने जंगलों के बीच बने आदिवासी संस्कृति के अनुसार बने झोपड़ियां विदेशियों को आकर्षति कर रहीं है। स्टे होम कर देशी-विदेशी पर्यटक यहां के आदिवासी कला व संस्कृति को जानने व समझने के शौकीन विदेशी व देशी सैलानी आदिवासी जीवन शैली को बहुत करीब से देख व समझ रहे हैं।