गौरतलब है कि बस्तर में छिड़े सरकार और माओवादी के बीच घोषित युद्ध में आदिवासी सालों से फंसा हुआ है। ऐसे में जब तक यह लड़ाई थम नहीं जाती तब तक इन इलाकों में रहने वाले आदिवासियों को राहत नहीं मिलेगी। शुक्रवार की सुबह साढ़े 9 बजे मार्च शामिल होने आए बीजापुर, सुकमा और जिलों व प्रदेशों के 300 से अधिक लोग दंतेश्वरी मंदिर के बाहर एकजुट हुए।
इसके बाद यहां आदिवासी समाज के दिग्गजों और पद्मश्री धर्मपाल सैनी ने हरी झंडी दिखाकर इन्हें रवाना किया। इसके बाद आदिवासियों की पारम्परिक सांस्कृतिक और नारे के साथ यह यात्रा शुरू हुई। साइकल यात्री अपने साथ राशन पानी भी ले रखा है। यात्री सभी बस्तर में कुछ देर रूके इसके बाद भानपुरी में जाकर यह रैली समाप्त हुई। संयोजक शुभ्रांशु चौधरी, सोशल एक्टिविस्ट डॉ शेख हनीफ, शबरी गांधी आश्रम चेट्टि के ए वी वी चंद्रशेखर साथ चल रहे हैं।
शांति के लिए बापू का रास्ता
इस पहल के जरिए सभी पक्षों से अपील करना चाहते हैं, कि जो आपसी मतभेद हैं, उन्हें गांधीवादी तरीके से क्या हल नहीं किया जा सकता। यह लंबी लड़ाईयह लंबी लड़ाई है, इसमें जल्द ही कुछ होगा ऐसी कोई उम्मीद नहीं है। लेकिन शांति प्रकिया चलनी चाहिए। सफल हो या नहीं, लेकिन प्रयास होना चाहिए। आदिवासियों के नेतृत्व में यह हो रहा है बड़ी बात है। पीडि़तों के नेतृत्व में आंदोलन चले, तो आंदोलन के सफल होने की उम्मीद बढ़ जाती है। इसमें पीडि़त आदिवासी बड़ी संख्या में शामिल हैं।
इस पहल के जरिए सभी पक्षों से अपील करना चाहते हैं, कि जो आपसी मतभेद हैं, उन्हें गांधीवादी तरीके से क्या हल नहीं किया जा सकता। यह लंबी लड़ाईयह लंबी लड़ाई है, इसमें जल्द ही कुछ होगा ऐसी कोई उम्मीद नहीं है। लेकिन शांति प्रकिया चलनी चाहिए। सफल हो या नहीं, लेकिन प्रयास होना चाहिए। आदिवासियों के नेतृत्व में यह हो रहा है बड़ी बात है। पीडि़तों के नेतृत्व में आंदोलन चले, तो आंदोलन के सफल होने की उम्मीद बढ़ जाती है। इसमें पीडि़त आदिवासी बड़ी संख्या में शामिल हैं।
माओवादियों के विरोध में नहीं है रैली
माओवादियों का एक पत्र आया है, जिसमें उन्होंने कहा कि यह रैली उनके खिलाफ है। लेकिन ऐसा नहीं है। वे सभी पक्ष जिनके चलते यह अशांति फैली है, उनसे हम शांति की अपील कर रहे हैं। क्योंकि इस हिंसा में मासूम आदिवासी मारे जा रहे हैं और वे ही बाहर निकलकर कहना चाह रहे हैं, ताकि शांतिपूर्ण तरीके से इसका हल निकले। यह रैली किसी के भी विरोध में नहीं है, शांति के पक्ष में है। आदिवासी प्रकृति प्रेमी, नहीं चाहिए सुरक्षा, प्रकृति करेगी रक्षा शांति मार्च में शमिल हुए आदिवासियों ने कहा कि वे दोनो ही पक्षों की हिंसा से परेशान हैं। इसलिए जरूरत है कि शांति हो। आदिवासी प्रकृति प्रेमी है, और यह इलाका आदिवासियों का है इसलिए उन्हें डर नहीं है। उनकी रक्षा प्रकृति करेगी,सुरक्षा नहीं चाहिए। इस मार्च में दंडकारणय इलाके के गोंड समाज के प्रमुख लोग शामिल हुए हैं।
माओवादियों का एक पत्र आया है, जिसमें उन्होंने कहा कि यह रैली उनके खिलाफ है। लेकिन ऐसा नहीं है। वे सभी पक्ष जिनके चलते यह अशांति फैली है, उनसे हम शांति की अपील कर रहे हैं। क्योंकि इस हिंसा में मासूम आदिवासी मारे जा रहे हैं और वे ही बाहर निकलकर कहना चाह रहे हैं, ताकि शांतिपूर्ण तरीके से इसका हल निकले। यह रैली किसी के भी विरोध में नहीं है, शांति के पक्ष में है। आदिवासी प्रकृति प्रेमी, नहीं चाहिए सुरक्षा, प्रकृति करेगी रक्षा शांति मार्च में शमिल हुए आदिवासियों ने कहा कि वे दोनो ही पक्षों की हिंसा से परेशान हैं। इसलिए जरूरत है कि शांति हो। आदिवासी प्रकृति प्रेमी है, और यह इलाका आदिवासियों का है इसलिए उन्हें डर नहीं है। उनकी रक्षा प्रकृति करेगी,सुरक्षा नहीं चाहिए। इस मार्च में दंडकारणय इलाके के गोंड समाज के प्रमुख लोग शामिल हुए हैं।
हम किसी के विरोध में नहीं
इस साइकिल यात्रा के विरोध में माओवादियों की डीकेएसजेडसी ने पर्चा जारी किया था। इस पर सुभ्रांशु ने कहा कि यह मार्च किसी के विरोध में नहीं है। मध्य भारत की अशांति, उसे तोडऩे शुरू की पहल
इस यात्रा के संयोजक सुभ्रांशु दंडकारण्य में पिछले 40 से हिंसा का दौर चल रहा है, लेकिन इस अशांति के लिए शांति है। इस चुप्पी को तोडऩे और शांति के लिए माहौल बनाने के लिए पहले चरण में बैठक, दूसरे चरण में गांधी जयंती की 150 वीं जयंती के मौके पर एक शुरूआत की गई है। और अब तीसरे चरण में राजधानी तक की साइकिल यात्रा की जा रही है।
इस साइकिल यात्रा के विरोध में माओवादियों की डीकेएसजेडसी ने पर्चा जारी किया था। इस पर सुभ्रांशु ने कहा कि यह मार्च किसी के विरोध में नहीं है। मध्य भारत की अशांति, उसे तोडऩे शुरू की पहल
इस यात्रा के संयोजक सुभ्रांशु दंडकारण्य में पिछले 40 से हिंसा का दौर चल रहा है, लेकिन इस अशांति के लिए शांति है। इस चुप्पी को तोडऩे और शांति के लिए माहौल बनाने के लिए पहले चरण में बैठक, दूसरे चरण में गांधी जयंती की 150 वीं जयंती के मौके पर एक शुरूआत की गई है। और अब तीसरे चरण में राजधानी तक की साइकिल यात्रा की जा रही है।
कुछ ऐसा है कार्यक्रम
इसलिए बस्तर में शांति के लिए इस बैठक में प्रक्रिया को अगली कड़ी के रूप में पदयात्रा को आगे ले जाते हुए 22 फरवरी से बस्तर के जगदलपुर से छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर तक एक शांति साइकिल यात्रा का आयोजन किया जा रहा है। यह साइकिल यात्रा 28 फरवरी 2019 को रायपुर पहुंचेगी और उसके बाद 1 और 2 मार्च को रायपुर में बस्तर डायलॉग-2 का आयोजन किया जाएगा। इसमें सरकार पर विभिन्न मांगों के साथ यह दबाव डालने का प्रयास किया जाएगा कि सरकार द्वारा सुकमा जिले के तत्कालीन कलेक्टर एलेक्स पॉल मेनन के समय जो वादा किया गया था उसे पूरा करे ताकि शांति वार्ता के लिए बेहतर माहौल तैयार हो सके।
इसलिए बस्तर में शांति के लिए इस बैठक में प्रक्रिया को अगली कड़ी के रूप में पदयात्रा को आगे ले जाते हुए 22 फरवरी से बस्तर के जगदलपुर से छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर तक एक शांति साइकिल यात्रा का आयोजन किया जा रहा है। यह साइकिल यात्रा 28 फरवरी 2019 को रायपुर पहुंचेगी और उसके बाद 1 और 2 मार्च को रायपुर में बस्तर डायलॉग-2 का आयोजन किया जाएगा। इसमें सरकार पर विभिन्न मांगों के साथ यह दबाव डालने का प्रयास किया जाएगा कि सरकार द्वारा सुकमा जिले के तत्कालीन कलेक्टर एलेक्स पॉल मेनन के समय जो वादा किया गया था उसे पूरा करे ताकि शांति वार्ता के लिए बेहतर माहौल तैयार हो सके।