जगदलपुर

आज से शुरू होगा बस्तर दशहरा, निभाई जा रही है पहली रस्म, पढ़े क्या खास होता है आज

हरियाली अमावस्या पर दंतेश्वरी मंदिर स्थित सिंह द्वार में शनिवार को बस्तर दशहरा की पहली रस्म पाट जात्रा निभाई जा रही है।

जगदलपुरAug 11, 2018 / 01:54 pm

Badal Dewangan

आज से शुरू होगा बस्तर दशहरा, निभाई जा रही है पहली रस्म, पढ़े क्या खास होता है आज

जगदलपुर. हरियाली अमावस्या पर दंतेश्वरी मंदिर स्थित सिंह द्वार में शनिवार को बस्तर दशहरा की पहली रस्म पाट जात्रा पूजा विधान पूर्ण किया गया। इसी के साथ ही 75 दिवसीय बस्तर दशहरा की शुरुआत हुई। बिलोरी ग्राम से लाए गए साल की लकड़ी ठुरलु खोटला की लाई, फूल, सिंदूर, चावल, केला, मोंगरी मछली, अंडा, बकरा अर्पित कर पूजा पाठ की गई। रथ बनाने वाले लकड़ी में कील लगाकर बस्तर दशहरा की शुरुआत हुई।

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पाठ जात्रा का अर्थ
इस रस्म में लकड़ी की पूजा की जाती है। बस्तर के आदिवासी अंचल में लकड़ी को अत्यंत पवित्र माना जाता है। जन्म से लेकर मृत्यु तक लकड़ी मनुष्य के काम आती है, इसलिए आदिवासी संस्कृति में इसका विशिष्ट स्थान है। बस्तर दशहरा देवी की आराधना का पर्व है।

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विश्व का सबसे बड़ा पर्व
कहा जाता है कि, बस्तर दशहरा विश्व का सबसे बड़ा पर्व है जो बस्तर के हरियाली अमावस्या के दिन शुरू होकर पूरे 75 दिनों तक चलता है। यह पर्व सैकड़ों सालों से बस्तर में मनाया जा रहा है। यह बस्तर के आदिवासियों का महापर्व भी कहा जा सकता है।

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75 दिनों में कुल 17 रस्मों से पूरा होता है बस्तर दशहरा
सैकड़ों सालो से चली आ रही इस परंपरा में कुल 17 रस्में होती है। आपको बता दें कि, हरियाली अमावस्या के दिन बिलोरी गांव से साल की लकड़ी लाकर उसकी पूजा पाठ करने के बाद उसमें कील ठोकने की पहली परंपरा ही पाठ जात्रा कहलाती है।

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