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गूंज रहा एशियाई व यूरोपीय पक्षियों का कलरव Kanger Valley National Park : कांगेर वैली नेशनल पार्क में इन दिनों एशियाई व यूरोपीय पक्षियों का कलरव गूंज रही है। अनुकूल जलवायु और सुरक्षित वातावरण होने के कारण यह स्थान पक्षियों के रहवास का प्रमुख स्थल साबित हो रहा है। (Kanger Valley National Park) साल 2023 में इसी तरह का एक सर्वेक्षण किया गया था। यहां पर राजकीय पक्षी पहाड़ी मैना सहित ब्लैक-हुडेड ओरिओल, रैकेट-टेल्ड ड्रोंगो, जंगल फाउल और कठफोड़वा सहित बड़ी संख्या में कई प्रजाति के पक्षी देखे गए थे।
कांगेर घाटी की जलवायु और भौगोलिक वातावरण पक्षियों के रहवास के लिये सबसे सुरक्षित स्थल है। यहां देश के कई दुर्लभ प्रजाति के पक्षियों को देखा जा सकता है जो प्रदेश में अन्य कहीं नहीं मिलते। यह प्रदेश के लिये बहुत हीे महत्वपूर्ण है। पर्यावरण और मानव जाति के आने वाली पीढ़ी के लिये इसका संरक्षण और संवर्धन जरूरी है।
– हकीमुद्दीन सैफी, सदस्य बर्ड काउंट इंडिया
कांगेर घाटी पक्षियों के रहवास का हॉटस्पाट Kanger Valley National Park : कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के निदेशक ने बताया कि कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान पक्षियों के रहवास के साथ ही पक्षी प्रेमियों लिए एक हॉटस्पॉट के रूप में उभर रहा है। जैव विविधताओं से लबरेज इस घाटी में सेंट्रल एशिया और यूरोपियन देशों के कई प्रवासी पक्षी भी मौजूद हैं। (Kanger Valley National Park) यहां सामान्य व कुछ दुर्लभ प्रजाति के पक्षियों का बसेरा है। इस सर्वे से पार्क में पक्षियों की प्रजाति और उसकी पहचान करने सहित उनकी आदतों और आबादी का पता लगाने में मदद मिलेगी।
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कांगेर घाटी पक्षियों के रहवास का हॉटस्पाट Kanger Valley National Park : कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के निदेशक ने बताया कि कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान पक्षियों के रहवास के साथ ही पक्षी प्रेमियों लिए एक हॉटस्पॉट के रूप में उभर रहा है। जैव विविधताओं से लबरेज इस घाटी में सेंट्रल एशिया और यूरोपियन देशों के कई प्रवासी पक्षी भी मौजूद हैं। (Kanger Valley National Park) यहां सामान्य व कुछ दुर्लभ प्रजाति के पक्षियों का बसेरा है। इस सर्वे से पार्क में पक्षियों की प्रजाति और उसकी पहचान करने सहित उनकी आदतों और आबादी का पता लगाने में मदद मिलेगी।
9 राज्यों के 100 से अधिक पक्षी विशेषज्ञ शामिल कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में दूसरे फेस की सर्वे में छत्तीसगढ़ के अलावा पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, गुजरात और राजस्थान के 70 से अधिक पक्षी विशेषज्ञ और शोधकर्ता शामिल रहे।