बारसूर में टीले में तब्दील हो चुके सूर्यदेवता के मंदिर के अवशेष के भीतर और भी प्राचीन मूर्तियां दबी हुई होने की पूरी संभावना है। इस जगह की खुदाई होने पर पुरातात्विक महत्व की कई महत्वपूर्ण जानकारियां हासिल हो सकती हैं।
बारसूर का एतिहासिक सूर्य मंदिर ध्वस्त होकर टीले में तब्दील हो गया है
जगदलपुर. बारसूर में ध्वस्त होकर टीले में तब्दील हो चुके प्राचीन सूर्य मंदिर की सुध जिला प्रशासन ने ली है। इस मंदिर के पुरावशेषों को सहेजने के लिए साफ-सफाई का काम शुरू कर दिया गया है। पहले चरण में यहां पर टीले के ऊपर से मिट्टी हटाई जा रही है। इसके बाद मंदिर के पत्थरों को अलग कर नंबरिंग की जाएगी, ताकि भविष्य में इसकी रीसेटिंग का काम किया जा सके। कलेक्टर दीपक सोनी की पहल पर पुरातात्विक धरोहरों के एक्सपर्ट की देखरेख में इन मंदिरों की साफ-सफाई का काम शुरू किया गया है। सूर्यदेव मंदिर के अलावा बारसूर के सोलह खंभा मंदिर, पेदम्मा गुड़ी में भी साफ-सफाई का काम करवाया गया है। ज्ञात हो कि पत्रिका ने 10 जून 2020 को त्रिमुखी सूर्यदेव की प्रतिमा खुले में पड़ी होने और मंदिर की उपेक्षा की खबर प्रमुखता से प्रकाशित की थी। इसके बाद भी इस मंदिर के संरक्षण और ऐतिहासिक स्थल की सुध न तो राज्य पुरातत्व विभाग ने ली, और न ही केंद्रीय पुरातत्व विभाग ने। अब जिला प्रशासन ने इसे संरक्षित करने का बीड़ा उठाया है। इस पहल से स्थानीय ग्रामीणों के काफी हर्ष व्याप्त है।
खास बातें – राज्य की इकलौती त्रिमुखी सूर्य प्रतिमा प्रतिमा खुले में पड़ी हुई है – मंदिर दबकर टीले में बदल चुका, ग्रीक देवता एटलस की तरह मानते हैं स्थानीय ग्रामीण, – तमान गुड़ी के नाम से विख्यात इस स्थल में सूर्यदेवता के दर्शन के बाद ही नव दंपतियों का गृह प्रवेश कराने की परंपरा – बारसूर के कलमभाटा पारा में स्थित है यह जगह – ध्वस्त होने से पहले मंदिर की जीर्ण हालत को देखते हुए ग्रामीणों ने सूर्यदेव की प्रतिमा को निकालकर कुसुम के पेड़ के नीचे रख दिया था – दु:खद पहलु यह है कि बारसूर के ऐतिहासिक धरोहरों की सूची में इस ध्वस्त हाे चुके मंदिर का जिक्र ही नहीं है। – इस 3 फीट ऊंची प्रतिमा में सात घोडों वाले रथ पर सवार सूर्यदेवता को दर्शाया गया है – खुदाई से मिल सकती है और भी जानकारियां – टीले में तब्दील हो चुके सूर्यदेवता के मंदिर के अवशेष के भीतर और भी प्राचीन मूर्तियां दबी हुई होने की पूरी संभावना है। इस जगह की खुदाई होने पर पुरातात्विक महत्व की कई महत्वपूर्ण जानकारियां हासिल हो सकती हैं। – 9 वीं से 11 वीं शताब्दी के दौरान इस इलाके में चालुक्य और छिंदक नागवंशी शासकों के काल में इन ऐतिहासिक मंदिरों का निर्माण कराया गया था।