तुरई के पत्तों में भोग लगाने की परंपरा, मानदानों को विशेष आमंत्रण
पं. जनार्दन शुक्ला ने बताया महाकोशल क्षेत्र में श्राद्ध तिथि पर पितरों को तुरई के पत्तों में भोग लगाने की लोक परंपरा सदियों से चली आ रही है। पितरों के भोग में विशेषकर तुरई वाली दाल जरूर बनाई जाती है। इसके अलावा उड़द दाल के बड़ा, मूंग दाल के मंगोड़े, कढ़ी, चावल, पुड़ी, खीर बनाए जाते हैं। जबलपुर व आसपास के जिलों में यह परंपरा बहुत पुरानी है। पितरों को तुरई के पत्तों में भोग लगाकर उन्हें छत व आंगन में आमंत्रित किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इन पत्तों में ही पितृ कौओं के रूप में आकर भोग ग्रहण करते हैं। इसके बाद बेटी-दामाद, बुआ-फूफा, भांजा-भांजी, बहन-जीजा समेत अन्य मानदानों व ब्राह्मणों को भोज कराकर उन्हें पितरों की याद में यथाशक्ति भेंट दी जाती है। ऐसी लोक मान्यता है कि मानदानों को खिलाने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है।
ज्योतिषाचार्य पं. जनार्दन शुक्ला ने बताया कि पितृ पक्ष की संकष्टी चतुर्थी पर भगवान गणेश का पूजन विशेष महत्व रखना है। मंगलवार को व्रतधारी माताएं एवं परिवार के लोगों ने शाम को चतुर्थी का चांद देखकर अपने एवं अर्थव शीर्ष का पाठ कर स्वर्गवासी पूर्वजों के मोक्ष की कामना से अर्घ दिया।