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जबलपुर

पितरों को तुरई के पत्तों में भोग देने की परंपरा, चतुर्थी पर पितरों का हुआ पिंडदान

पितरों को तुरई के पत्तों में भोग देने की परंपरा, चतुर्थी पर पितरों का हुआ पिंडदान

जबलपुरSep 14, 2022 / 12:45 pm

Lalit kostha

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pitru paksha

जबलपुर। श्राद्ध पक्ष पखवाड़ा में मंगलवार को चतुर्थी तिथि का तर्पण, पिंडदान हुआ। नर्मदा समेत हनुमानताल, अधारताल तालाब समेत आसपास की अन्य नर्मदा की सहायक नदियों पर भी पितरों का तर्पण, श्राद्ध आदि कर्मकांड सम्पन्न हुए। नर्मदा तट ग्वारीघाट में सबसे ज्यादा लोग पितरों का तर्पण आदि करने पहुंचे। तीर्थ पुरोहितों ने विधि विधान से चतुर्थी तिथि पर गौलोक गए पितरों का श्राद्ध, पिंडदान कर मोक्ष की कामना के साथ दान पुण्य कर्म कराया। शहर से दूर रहने वाले लोग भी नर्मदा तटों पर अपने पितरों का पिंडदान करने के लिए पहुंच रहे हैं। कुलपुरोहितों व तीर्थ पंडों से विधि पूर्वक पूर्वजों की आत्मा को शांति प्रदान करने की प्रार्थना भी कर रहे हैं।

तुरई के पत्तों में भोग लगाने की परंपरा, मानदानों को विशेष आमंत्रण
पं. जनार्दन शुक्ला ने बताया महाकोशल क्षेत्र में श्राद्ध तिथि पर पितरों को तुरई के पत्तों में भोग लगाने की लोक परंपरा सदियों से चली आ रही है। पितरों के भोग में विशेषकर तुरई वाली दाल जरूर बनाई जाती है। इसके अलावा उड़द दाल के बड़ा, मूंग दाल के मंगोड़े, कढ़ी, चावल, पुड़ी, खीर बनाए जाते हैं। जबलपुर व आसपास के जिलों में यह परंपरा बहुत पुरानी है। पितरों को तुरई के पत्तों में भोग लगाकर उन्हें छत व आंगन में आमंत्रित किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इन पत्तों में ही पितृ कौओं के रूप में आकर भोग ग्रहण करते हैं। इसके बाद बेटी-दामाद, बुआ-फूफा, भांजा-भांजी, बहन-जीजा समेत अन्य मानदानों व ब्राह्मणों को भोज कराकर उन्हें पितरों की याद में यथाशक्ति भेंट दी जाती है। ऐसी लोक मान्यता है कि मानदानों को खिलाने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है।

ज्योतिषाचार्य पं. जनार्दन शुक्ला ने बताया कि पितृ पक्ष की संकष्टी चतुर्थी पर भगवान गणेश का पूजन विशेष महत्व रखना है। मंगलवार को व्रतधारी माताएं एवं परिवार के लोगों ने शाम को चतुर्थी का चांद देखकर अपने एवं अर्थव शीर्ष का पाठ कर स्वर्गवासी पूर्वजों के मोक्ष की कामना से अर्घ दिया।

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