इन इकाइयों के अलावा औद्योगिक क्षेत्र में कोई भी नई इकाइयां नहीं आ पाई हैं। जानकारों का कहना है कि इकाइयोंकी सबसे बड़ी जरुरत लौह अयस्क के रूप में कच्च माल है। इनकी कोई नई खदान अभी स्वीकृत नहीं हो रही हैं। इसलिए जिन लोगों के पास पुरानी खदाने हैं, उन्हें इकाइयों को चलाने के लिए यही से खनिज लेना पड़ता है। हालांकि आसपास दूसरे खनिज भी पाए जाते हें। उनकी इकाइयां भी लग सकती है लेकिन इस क्षेत्र के बारे में राजनीतिक और प्रशासनिक उदासीनता हमेशा रही है।
187 हेक्टेयर एरिया विकसित
मध्यप्रदेश इंडस्ट्रीयल डेवपलमेंट कारपोरेशन (पूर्व में एकेवीएन) ने हरगढ़ में विकास किया था। लगभग 290 हेक्टेयर में लगभग 187 हेक्टेयर क्षेत्रफल को विकसित किया गया था। इसमें रोड़, नाली से लेकर तमाम प्रकार की सुविधा मुहैया कराई गई थी। लेकिन इनका उपयोग नहीं हो सका है। पहले करीब 101 हेक्टेयर में खनिज एवं खनिज आधारित स्पेशल इकानॉमिक जोन बनाया गया था, लेकिन इंडस्ट्री नहीं आने के कारण वर्ष 2016 में इसे डी नोटिफाइड कर दिया गया था।
– 290 हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्रफल
– 187 हेक्टेयर क्षेत्रफल में विकास
– 04 इंडस्ट्री का हो रहा संचालन
लग सकता है बड़ा कारखाना
आयरन ओर से ही लोहे के लिए कच्चा माल तैयार किया जाता है। लेकिन िस्थति यह है कि यहां से कच्चा माल बाहर जाता है लेकिन उसका सरिया और दूसरी चीजें बनकर यहां आती हैं। अगर मिनी और बड़ा इस्पात कारखाना यहां लग जाए तो न केवल क्षेत्र की तस्वीर बदलेगी बल्कि आसपास के युवाओं को रोजगार भी मिलेगा।
इनका हो रहा संचालन
– फोरमेन इंडस्ट्री प्राइवेट लिमिटेड
– ब्रोकन हिल्स माइन्स कंपनी
– जैन माइन्स
– अर्चना हाइटेक
हरगढ़ में वर्तमान इंडस्ट्री के अलावा नए उद्योगों की स्थापना के लिए प्रयास किए जाते हैं। आगे भी इसके लिए काम होगा। यदि कोई निवेशक यहां पर अपनी इकाई स्थापित करना चाहता है तो उसे बहुत कम समय में भूमि उपलब्ध कराई जाएगी।
सीएस धुर्वे, कार्यकारी संचालक एमपीआइडीसी जबलपुर