नीरज मिश्र @ जबलपुर। खालो-खालो मोरे मेहमान… कटंगी को रसगुल्ला..। ठेठ बुंदेली अंदाज में ये पंक्तियां किसी और के लिए नहीं, बल्कि रसगुल्लों के लिए लिखी गई हैं। लोक कलाकार बकायदा मंचों पर इसका गायन भी करते हैं। दरअसल कटंगी का रसगुल्ला है ही इतना लजीज कि इसके लिए वाहनों के पहिए तक थम जाते हैं। दशकों पुरानी दुकानों पर मिट्टी के कुल्हड़ में रसगुल्ले खरीदने के लिए कतारें लगती हैं। और तो और इस क्षेत्र में आने वाली बारातों में वर पक्ष की खास फरमाईश रहती है कि बारातियों का स्वागत कटंगी के रसगुल्लों से किया जाए…।
ये है रसगुल्लों की खासियत
कटंगी में बनने वाले रसगुल्ले बेहद स्वादिष्ट होते हैं। शुद्ध घी और खोए से इन्हें बनाया जाता है। घरों में बनने वाले रसगुल्लों से इनका साइज चार गुना होता है। रसगुल्ला बनाने वाले राजेश जैन बताते हैं कि उनकी दुकान 110 साल से संचालित है। वे पिछले 20 वर्षों से रसगुल्ले बना रहे हैं। आम रसगुल्लों की तरह ही हम इन रसगुल्लों को बनाते हैं। बस शुद्ध घी का इस्तेमाल किया जाता है। उपयोग में लाया जाने वाला खोया भी आस-पास के ग्रामीण क्षेत्रों से आने के कारण शुद्ध होता है।
दूसरे जिले में भी जाते है रसगुल्ले
जबलपुर, दमोह, सागर रूट पर कटंगी ब्लॉक स्थित है। इसलिए इन रूटों पर जाने वाले यात्री कटंगी में रसगुल्ले खाने के लिए जरूर रुकते हैं। यात्री इन रसगुल्लों को पैक कराके भी ले जाते हैं।
हांडी में होते हैं पैक
इन रसगुल्लों को पैक करने का तरीका भी अलग है। इन्हें मिट्टी से बनी हांडी में पैक किया जाता है, ताकि यात्रा के दौरान इनका साइज न बिगड़े। दूरदराज से आने वाले यात्री हांडियों में रसगुल्ले पैक कराके ले जाते हैं।
15 से 20 रुपए का गुलाब जामुन
यहां बने गुलाब जामुन की 15 से 20 रुपए होती है। दुकानदारों का कहना है कि इन्हें बनाने में लागत अधिक आती है। वहीं अन्य स्थानों पर बिकने वाले गुलाब जामुनों से इनका साइज भी कई गुना होता है। दो रसगुल्ले ही एक व्यक्ति का पेट भरने के लिए काफी हैं।