शनिवार के दिन शनिदेव की पूजा का विधान है। कहते हैं कि इस दिन शनिदेव को तेल, तिल अर्पित करने और वस्त्रों व लोहे को दान करने से पुण्य की प्राप्ती होती है और शनिदेव प्रसन्न होकर आशीर्वाद प्रदान करते हैं। लेकिन शहर में एक ऐसा मंदिर है जहां शनिदेव नही विराजते लेकिन शनि मंदिरों से ज्यादा प्रति सप्ताह भीड़ होती है। शनिवार को यहां भंडारे का भी आयोजन किया जाता है। ये स्थान बाजना मठ के नाम से प्रसिद्ध है। हम आपको इसी स्थान की खूबियों के बारे में बताने जा रहे हैं…
-इस मंदिर में बटुक भैरव विराजमान हैं, जिनकी स्थापना गोंडकालीन बताई जाती है।
-यहां शनिवार के दिन भारी भीड़ जुटती है। दूर-दूर से श्रद्धालु यहां तेल चढ़ाने आते हैं।
-मंदिर को लेकर कई तरह की मान्यताएं हैं जिसकी वजह से महिलाएं भी बाबा को तेल चढ़ाती हैं।
-यह एक तांत्रिक मंदिर है जहां अब भी गुप्त साधना के लिए साधु, तांत्रिक पहुंचते हैं।
-कहते हैं कि यहां रानी दुर्गावती, संग्राम सागर भी तेल अर्पित करने और पूजन के लिए आया करते थे।
-मंदिर के अंदर एक भी खिड़की नही है। प्रवेश के लिए मात्र एक दरवाजा है। इससे गोंडकालीन शिल्पकला का पता चलता है।
-गर्भगृह में हर वक्त अंधेरा देखने मिलता है जो कि धुएं से भरा रहता है। ये स्थान भी अन्य मंदिरों की तुलना में काफी छोटा है।
-इस स्थान को देश के दस तांत्रिक मंदिरों में प्रथम स्थान प्राप्त है। यहां अब भी तालाब का किनारा और पहाड़ का सुंदर दृश्य देखने मिलता है।