जबलपुर। विक्रम संवत के माह भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की नवमी पर गुग्गा या गोगानवमी मनाई जाती है। इस बार ये 26 अगस्त को है। गोगानवमी के दिन नागों की पूजा करते हैं। मान्यता है कि गोगा देवता की पूजा करने से सांपों से रक्षा होती है। गोगा देवता को सांपों का देवता भी माना जाता है। उनकी पूजा श्रावण मास की पूर्णिमा यानी रक्षाबंधन से आरंभ हो जाती है, यह पूजा-पाठ नौ दिनों तक यानी नवमी तक चलती है इसलिए इसे गोगानवमी कहा जाता है। गोगादेव जन्म कथा गोगानवमी के विषय में एक कथा प्रचलित है, जिसके अनुसार गोगा मारू देश के राजा थे। उनकी मां बाछला, गुरु गोरखनाथजी की परम भक्त थी। एक दिन बाबा गोरखनाथ अपने शिष्यों समेत बछाला के राज्य में आते हैं। रानी को जब इस बात का पता चलता है तो वह बहुत प्रसन्न होती हैं। इधर, बाबा गोरखनाथ अपने शिष्य सिद्ध धनेरिया को नगर में जाकर फेरी लगाने का आदेश देते हैं। गुरु का आदेश पाकर शिष्य नगर में भिक्षाटन करने के लिए निकल पड़ता है। Read More: जन्माष्टमी 2016: ये हैं भगवान श्रीकृष्ण के 51 नाम और उनके अर्थ भिक्षा मांगते हुए वह राजमहल में जा पहुंचता है तो रानी योगी को बहुत सारा धन प्रदान करती है, लेकिन शिष्य वह लेने से मना कर देता है और थोडा़ सा अनाज मांगता है। रानी अपने अहंकारवश उससे कहती है कि राजमहल के गोदामों में तो अनाज का भंडार लगा हुआ है। तुम इस अनाज को किसमें ले जाना चाहोगे तो योगी शिष्य अपना भिक्षापात्र आगे बढ़ा देता है। आश्चर्यजनक रूप से सारा अनाज उसके भिक्षा पात्र में समा जाता है और राज्य का गोदाम खाली हो जाता है। Read More: इस कुण्ड में स्लेट धोते थे ‘कन्हैया’, जगतगुरू के गुरू ने यहीं लिखी थी गिनती फिर भी योगी का पात्र नहीं भरता। यह देख रानी उन योगीजन की शक्ति के समक्ष नतमस्तक हो जाती है और उनसे क्षमा याचना की गुहार लगाती है। रानी योगी के समक्ष अपने दु:ख को व्यक्त करती है और कहती हैं कि उनकी कोई संतान नहीं है। शिष्य योगी, रानी को अपने गुरु से मिलने को कहता है। अगले दिन सुबह रानी जब गुरु के आश्रम जाने के लिए तैयार होती है, तभी उसकी बहन काछला ये सारा भेद जान जाती है। वह अपनी बहन से पहले गुरु गोरखनाथ के पास पहुंचकर उनसे दोनों फल ग्रहण कर लेती है। रानी बाद में जाती है तो ये बात सामने आती है। गुरु गोरखनाथ सारी बातें सुनने के बाद उन्हें दूसरा फल देकर आशीर्वाद देते हैं कि रानी कापुत्र वीर, नागों को वश में करने वाला तथा सिद्धों का शिरोमणि होगा। कुछ समय बाद रानी को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है, जिसका नाम गोगा रखा जाता है। Read more: लकड़ी के गट्ठे बन गए पेड़, सुदामा ने कृष्ण से चुराकर यहीं खाए थे चने गोगानवमी कथा कुछ समय पश्चात गोगा के विवाह के लिए तैयारियां शुरू होती हैं। उनकी वधू के लिए गौड़ बंगाल के राजा मालप की बेटी सुरियल को चुना जाता है, लेकिन राजा बेटी की शादी गोगा से करवाने से इनकार कर देते हैं। इस बात से दु:खी गोगा गुरु गोरखनाथजी के पास जाते हैं और उन्हें पूरा वृत्तांत बताते हैं। बाबा गोरखनाथ शिष्य को दु:खी देख उनकी सहायता हेतु वासुकी नाग से राजा की कन्या को विषप्रहार करवाते हैं। राजा के वैद्य उस विष का तोड़ नहीं जान पाते। अंत में वेश बदले वासुकी नाग राजा से कहते हैं कि यदि वह गोगा मंत्र का जाप करें तो शायद विष का प्रभाव समाप्त हो जाए। राजा गुगमल मंत्र का प्रयोग विष उतारने के लिए करते हैं। देखते ही देखते राजा की बेटी विष के प्रभाव से मुक्त हो जाती है और राजा अपने कथन अनुसार अपनी पुत्री का विवाह गोगा से करवा देता है।