जबलपुर

MP के इस युवा का संकल्प आदिवासी कलाकारों के गम को खुशी में बदल रहा, विदेशों में हो रही तारीफ

स्मार्ट सिटी जबलपुर के इन्क्यूबेशन सेंटर के स्टार्टअप आजीविका एक ऐसा प्लेटफॉर्म है, जो कि हमारे ग्रामीण इलाकों में रहने वाले आदिवासी कलाकार और ग्रामीण उत्पादों को वैश्विक बाजारों तक पहुंचने का कार्य कर रहा है।

जबलपुरDec 11, 2021 / 09:56 pm

Faiz

MP के इस युवा का संकल्प आदिवासी कलाकारों के गम को खुशी में बदल रहा, विदेशों में हो रही तारीफ

जबलपुर. एक युवा जिसने आदिवासियों के जीवन को करीब से देखा। उनका दर्द महसूस किया कि वे किस तरह से कठिनाइयों से गुजर रहे हैं। कला का हुनर होते हुए भी उनका जीवन कड़े संघर्षों से गुजर बसर कर रहा है। ऐसे में उसने इन अनदेखे कलाकारों को एक ऐसा मंच देने का संकल्प लिया, जिससे इन आदिवासियों की कला को जन-जन तक न केवल पहुंचाया जाए, बल्कि कमाई का जरिया भी बन सके। मध्य प्रदेश के जबलपुर में रहने वाले स्नेहिल नामदेव वो युवा हैं, जिनके स्टार्टअप को महज दो साल में ‘स्टार्टअप ऑफ द ईयर’ का पुरस्कार मिल चुका है।


स्नेहिल नामदेव ने बताया कि, स्मार्ट सिटी जबलपुर के इन्क्यूबेशन सेंटर के स्टार्टअप आजीविका एक ऐसा प्लेटफॉर्म है, जो कि हमारे ग्रामीण इलाकों में रहने वाले आदिवासी कलाकार और ग्रामीण उत्पादों को वैश्विक बाजारों तक पहुंचने का कार्य कर रहा है। हमारे कार्य की प्रगति देखकर स्मार्ट सिटी जबलपुर द्वारा आजीविका को स्टार्टअप ऑफ द ईयर पुरस्कार से सम्मानित भी किया जा चुका है।

 

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देश-विदेश में पहचान दिलाना मकसद- स्नेहिल

स्नेहिल नामदेव ने बताया कि, साल 2009 में उन्होंने आदिवासी कला और कलाकारों को रोजगार के साथ उनकी कलाकृतियों को देश विदेश में मंच देने के उद्देश्य से स्टार्ट अप आजीविका ई-कार्ट लॉच किया था, जिससे पहले साल ही हमने 262 से अधिक आदिवासी कलाकारों या उत्पादन कर्ताओं को जोड़कर उनके उत्पादों की बिक्री शुरू कर दी थी। जिसे कुछ ही समय में बहुत आच्छा रिस्पॉस मिला।


50 से ज्यादा कलाकारों की कलाओं को मिली देश-विदेश में पहचान

कलाकारों को उनकी मेहनत का पैसा भी मिलने लगा। आजीविका ई-कार्ट अब तक 50 से ज्यादा उत्पादन कर्ताओं और कलाकारों की कलाकृतियों को देश-विदेश में पहचान दिला चुका है। स्नेहिल ने बताया कि, हम मध्य प्रदेश की महत्वपूर्ण जनजातीय कलाकृतियों को देश-विदेश तक पहुंचने के लिए प्रयासरथ हैं। हमारे शुरुआती दौर में सभी जनजातीय कलाकार अपने कार्य से बहुत खुश नहीं हुआ करते थे। कलाकारों के लिए उन की आजीविका चलाना भी मुश्किल हो रहा था। उस वक्त आजीविका ई-कार्ट उन तक पहुचा और उनकी समस्या को समझकर एक अच्छा बाजार मुहैया कराया गया।

 

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