जबलपुर

सिहोरा अस्पताल में एक भी विशेषज्ञ नहीं, मेडिकल अफसर भी कम

सिहोरा अस्पताल में एक भी विशेषज्ञ नहीं, मेडिकल अफसर भी कम

जबलपुरSep 22, 2022 / 11:31 am

Lalit kostha

Sihora Hospital

जबलपुर। सिहोरा अंचल के सबसे बड़े सिविल अस्पताल में चिकित्सकों की कमी है। अस्पताल में विशेषज्ञ चिकित्सकों के सभी पद, चिकित्सा अधिकारी पैरामेडिकल स्टाफ के आधे से अधिक पद खाली रहने से अस्पताल में मरीजों को इलाज नहीं मिल पाता। अस्पताल में पदस्थ नर्स जबलपुर के विभिन्न अस्पतालों में संलग्न रहने से स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिल पाती है।

आमजन को नहीं मिल रही स्वास्थ्य सुविधाएं

पत्रिका ने बुधवार को जब अपनी पड़ताल में सिविल अस्पताल में चिकित्सक पैरामेडिकल नर्सों की जानकारी ली तो चौकाने वाले आंकड़े सामने आए। अस्पताल में मेडिसिन, शल्य क्रिया स्त्री रोग, निश्चेतना के दो-दो विशेषज्ञ नेत्र रोग, अस्थि रोग के एक-एक पद स्वीकृत हैं, लेकिन बीते 10 वर्ष से विशेषज्ञ चिकित्सकों के सभी पद रिक्त हैं।

अस्थि रोग में एक विशेषज्ञ ने 2 दिन पद ग्रहण जरूर किया, लेकिन उनका संलग्नीकरण रानी दुर्गावती चिकित्सालय कर दिया गया है। चिकित्सा अधिकारी के स्वीकृत 7 पदों में 4 पद खाली रहने से अस्पताल की ओपीडी इमरजेंसी सुविधाएं प्रभावित हैं। पदस्थ तीन चिकित्सकों में से एक के नाइट इमरजेंसी रहने से अस्पताल में दिन में दो चिकित्सक ही रह जाते हैं।

नर्स: पदस्थापना सिहोरा में अटैचमेंट कहीं और

अस्पताल में पदस्थ नर्सों के बारे में जो जानकारी आई वह बेहद चौंकाने वाली है। अस्पताल में पदस्थ नर्सों की संख्या तीस है और सभी का वेतन सिहोरा अस्पताल से निकलता है, लेकिन बारह नर्स जबलपुर के विभिन्न अस्पतालों में पदस्थ हैं। अस्पताल में पदस्थ पैरामेडिकल स्टाफ की कमोवेश यही स्थिति है। पैरामेडिकल स्टाफ, सहायक प्रबंधक नर्सिंग, सिस्टर मेट्रन, लैब टेक्नीशियन, फार्मासिस्ट, रेडियोग्राफर, लेबोटरी अटेंडेंट, असिस्टेंट ग्रेड 2, असिस्टेंट ग्रेड 3 व अन्य पदों के लिए चालीस पदों में बाइस पद खाली पड़े हैं। इनमें भी डाटा एंट्री ऑपरेटर, लैब टेक्नीशियन जबलपुर में संलग्न रहने से सिविल अस्पताल का काम प्रभावित है।

कठिन है इलाज

मौसम के संक्रमण काल में वायरल फीवर मलेरिया पीलिया से पीड़ित मरीज बड़ी संख्या में पहुंच रहे हैं। इस मौसम में ओपीडी में मरीजों की संख्या तीन सौ तक पार कर जाती है। ऐसे में ओपीडी में तैनात एक चिकित्सक को बड़ी संख्या में पहुंचे मरीजों को देखकर इलाज कर पाना बड़ी कठिन होता है। ऐसे में अगर अस्पताल में कोई पोस्टमार्टम आ जाए तो चिकित्सक को ओपीडी छोड़ पोस्टमार्टम में जाना पड़ता है।

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