मान्यता -हर शनिवार रात जागृत होते हैं भगवान, मठ की गुंबद के त्रिशूल से निकलने वाली ध्वनि तरंगों से होती है शक्तियां जागृत
संग्राम शाह ने कराया निर्माण
बाजना मठ का निर्माण 1500 ईस्वी में राजा संग्राम शाह द्वारा बटुक भैरव मंदिर के नाम से कराया गया था। मठ की खासियत यह रही है कि इसकी गुंबद पर लगे त्रिशूल से निकलने वाली प्राकृतिक ध्वनि तरंगे शक्तियों को जागृत करती हैं। इसलिए इसे सिद्ध तांत्रिक मंदिर माना जाता है। अब भी शनिवार की रात्रि को बड़ी संख्या में तंत्र साधक पहुंचते हैं।
धुएं की धुंध में नहीं दिखता कोई
मठ के गर्भगृह में भैरव नाथ के बाल रूप की प्रतिमा स्थापित है। जो सामान्य दिनों में बाहर से भी देखी जा सकती है। किंतु शनिवार या विशेष अवसरों पर अगबत्ती, धूप व हवन का धुआं पूरी तरह से अंधेरा कर देता है। ऐसे में पूजन कर रहे दर्जनों लोग भी यहां दिखाई नहीं देते हैं। जबकि अंदर जाने वाला श्रद्धालु हर बिना कुछ दिखाई दिए भी सीधे प्रतिमा तक पहुंच जाता है। मठ में छिद्र के नाम पर छोटे दरवाजे के अलावा एक छोटी सी खिडक़ी बस है।
दी जाती थी बलि
बाजना मठ में तंत्र साधना के साथ ही तामसिक पूजन भी होता है। सदियों तक मंदिर परिसर में पशुओं की बलि दी जाती रही है, जो कुछ दशक पहले तक जारी रही। हालांकि अब यह प्रथा पूरी तरह बंद कर दी गई है।
मन्नतें पूरी करने के लिए प्रसिद्ध है मठ
बाजना मठ को मन्नतें पूरी करने वाला सिद्ध भैरव दरबार भी माना जाता है। नि:संतानता, विवाह बाधा, मृत आत्माओं की मुक्ति, पितृदोष समेत अन्य समस्याओं से निजात पाने व मन्नते मांगने वाले यहां बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। कहा जाता है कि यहां कही गई बात पूरी जरूर होती है। कुछ लोग परिसर में नारियल भी बांधकर जाते हैं।