राक्षस के बनाए शिवलिंग
नर्मदा चिंतक डॉ. सत्येन्द्र स्वरूप शास्त्री के अनुसार दैत्यों के सबसे ज्यादा प्रिय शिव भगवान रहे हैं। वे उनकी तपस्या कर वरदान प्राप्त करते थे। एक ऐसा ही राक्षस बाणासुर हुआ करता था। जिसने सृष्टि को जीतने के लिए देवाधिदेव महादेव की घोर तपस्या की। उसने मां नर्मदा के भेड़ाघाट के पास बैठकर सहस्त्र पार्थिव शिवलिंग बनाए और उनका अभिषेक पूजन करने के बाद नर्मदा में विसर्जन किया। जिससे प्रसन्न होकर महादेव ने उसे मनचाहा वरदान दिया। जिस स्थान पर बाणासुर ने तपस्या की थी, वहां आज भी शिवलिंग मौजूद हैं। हजारों सालों से वे शिवलिंग जैसे के तैसे पड़े हुए हैं। इसे आज बाण कुंड के नाम से भी जाना जाता है। यहां का हर पत्थर गोल है,ये स्वयं प्रतिष्ठित शिवलिंग हैं, इन्हें घर पर या देवस्थान पर रखकर सीधे पूजन किया जा सकता है, प्राण प्रतिष्ठा कराने की आवश्यकता नहीं होती है।
नर्मदा अपने उद्गम अमरकंटक से लेकर भरूच में समंदर से मिलन तक हजारों रहस्य छिपाए हुए हैं। जिनमें अधिकतर ऐसे हैं जो प्रत्यक्ष प्रमाणित हैं। इनका शास्त्रों में उल्लेख भी मिलता है। संस्कारधानी जबलपुर में मां रेवा का एक ऐसा ही कुण्ड मौजूद है, जहां मां नर्मदा अपनी पावन धाराओं से स्वयं पत्थरों को भगवान शिव में परिवर्तित कर रही है।
मेकलसुता का यह कुण्ड सदियों से आस्था और विश्वास का केन्द्र बना हुआ है। ऐसा माना जाता है कि इस कुण्ड के शिवलिंग को बिना प्राण प्रतिष्ठा किए सीधे पूजा जा सकता है। इसी कुण्ड के पास कल्चुरीकालीन मंदिर में विद्यमान भगवान शिव और पार्वती की अनोखी प्रतिमा स्थापित है, जो संपूर्ण भारत में कहीं और देखने नहीं मिलती। शिव विवाह प्रसंग की यह प्रतिमा अपने आप में अनूठी है।
बाणासुर ने बनाए थे पार्थिव शिवलिंग
शहर से लगभग 22 किलोमीटर दूरी पर स्थित मां नर्मदा तट भेड़ाघाट अपनी संगमरमरी पहाडिय़ों के लिए विश्व प्रसिद्ध तो है ही साथ ही यहां का ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व भी लोगों की जिज्ञासा का केन्द्र बना रहता है। एक ऐसा ही नाम है बाण कुण्ड।
नर्मदा चिंतक पं. द्वारकानाथ शुक्ल शास्त्री ने बताया कि शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि नर्मदा के इस स्थान पर दैत्य बाणासुर ने भगवान शिव का प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी। उसने सवा लाख पार्थिव शिवलिंग निर्माण किया व उनका रुद्राभिषेक कर कुण्ड में विसर्जित करता रहा। इसके बाद से इस कुण्ड का हर पत्थर शिवलिंगनुमा गोल होने लगा, जिससे बाणासुर के नाम से इस कुंड को पहचाना जाने लगा।
नहीं होते नुकीले पत्थर
नर्मदा तट के अन्य घाटों व स्थानों पर पाए जाने वाले पत्थर नुकीले व धारदार होते हैं। किंतु इस कुण्ड की विशेषता है कि यहां पाया जाने वाला हर पत्थर गोल व शिवलिंग के आकार का होता है। महंत धर्मेन्द्र पुरी का कहना है चूंकि बाणासुर ने रुद्राभिषेक कर इस कुंड में पार्थिव शिवलिंग का विसर्जन किया था, जो प्राण प्रतिष्ठित कहलाते हैं। ऐसे में बाण कुण्ड का हर पत्थर स्वयं प्राण प्रतिष्ठित शिवलिंग है। इनकी स्थापना बगैर प्राण प्रतिष्ठा पूजन से की जा सकती है। यही वजह है कि कुण्ड आने वाले लोग यहां से पिंडी ले जाना नहीं भूलते।
शिव विवाह प्रसंग की एकमात्र प्रतिमा
पुरात्व विशेषज्ञ राजकुमार गुप्ता ने बताया 8वीं शताब्दी में कल्चुरी काल के राजा नृसिंहदेव की माता अल्लहड़ देवी ने प्रजा की सुख-शांति के लिए शिव पार्वती मंदिर का निर्माण कराया था। वहीं प्रमुख पुजारी महंत धर्मेंद्रपुरी का कहना है कि इस स्थल पर सुपर्ण ऋषि ने भगवान शिव की आराधना की थी। भगवान शिव, माता पार्वती ने उन्हें साक्षात दर्शन दिए। ऋषि ने उन्हें अनुष्ठान तक इसी स्थान पर रुकने के लिए कहा और नर्मदा में जल समाधि ले ली। तब से भगवान माता पार्वती के साथ यहीं के होकर रह गए। इन्हें कल्याणसुंदरम भी कहा जाता है।
मंदिर में विद्यमान शिव विवाह के अवसर की है और यह संपूर्ण भारत में इकलौती प्रतिमा है। इनकी बारात में आई योगिनी बाहर प्रांगण में विराजमान हैं। सावन सोमवार, कार्तिक पूर्णिमा, शिवरात्रि , बसंत पंचमी, पुरुषोड्डाम माह में भक्तों की भीड़ उमड़ती है। इनके पूजन दर्शन से भक्तों का कल्याण निश्चित है। स्थापत्यकला का बेजोड़ नमूना आज भी लोगों के आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है।