जबलपुर। वैसे तो नर्मदा के प्रत्येक तट का अपना अलग ही महत्व है। कई रोचक किस्से भी इनसे जुड़े हुए हैं। लेकिन एक ऐसा भी स्थान है जहां मकर संक्रांति के अवसर पर भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। इसके अतिरिक्त भी यहां कुछ ऐसे तट हैं जहां ऋषियों ने गुप्त तप कर सिद्धियां प्राप्त कीं। आइए आज हम आपको ऐसे ही अद्भुत स्थानों की ओर लेकर चलते है…
1. तिलवारा घाट: प्राचीनकाल में तिल मांडेश्वर मंदिर यहां हुआ करता था। इसके साथ तिल संक्रांति का मेला भी यहीं लगता है। जिसके चलते इस घाट का नाम तिलवारा घाट पड़ गया। यहां नर्मदा मैया के भक्तों को रोज ही देखने मिलता है।
2. भेड़ाघाट, पंचवटी घाट: इस घाट को लेकर मान्यता है कि 14 वर्ष वनवास के दौरान भगवान श्रीराम यहां आए और भेड़ाघाट स्थित चौसठ योगिनी मंदिर में ठहरे थे। भेड़ाघाट का नाम भृगु ऋषि के कारण पड़ा है। पंचवटी में अर्जुन प्रजाति के पांच वृक्ष होने के कारण इसका नाम पंचवटी पड़ा है।
3. जिलहरी घाट: ग्वारीघाट से कुछ ही दूरी पर स्थित नर्मदा के इस घाट की कहानी शिवलिंग से जुड़ी है। ऐसा माना जाता है कि यहां भगवान शिव की पिंडी स्थापित होने के लिए जिलहरी स्वयं निर्मित हो गई थी, जो आज भी देखी जा सकती है। इसलिए इस घाट को जिलहरी घाट कहा जाने लगा।
4. लम्हेटाघाट: प्राचीन मंदिरों के कारण इस घाट का विशेष महत्व है। इस घाट पर श्रीयंत्र मंदिर है, जिसे लक्ष्मी माता का प्रतीक माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में अनुष्ठान आदि करने से लक्ष्मी की प्राप्त होती है। चूंकि ये लम्हेटा गांव के अंतर्गत आता है, इसलिए इसे लम्हेटा घाट कहा गया है। एक रोचक तथ्य यह भी है कि इस घाट का उत्तरी तट लम्हेटा और दक्षिणी तट लम्हेटी कहलाता है। यहां स्थित नर्मदा के घाट अत्यंत ही खतरनाक एवं फिसलन वाले हैं। यहां मगर भी पाए जाते हैं।
5. ग्वारीघाट: धार्मिकमान्यताओं के अनुसार नर्मदा के इस तट पर माता गौरी ने तपस्या की थी। यहां मौजूद गौरी कुंड भी इस बात की पुष्टि करता है। बहुत साल पहले इसे गौरीघाट के नाम से जाना था, जो अब ग्वारीघाट के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा कुछ लोगों का मानना है कि ग्वारी का अर्थ गांव और घाट नदी के होते हैं, इसलिए इसका नाम ग्वारीघाट हो गया है।
6. सिद्ध घाट: यहां योगी तपस्वी और ध्यानी भक्ति में लीन होकर बैठा करते थे। यहां एक कुंड है जिसमें पूरे साल पानी भरा रहता है और नर्मदा में मिल जाता है। तपस्वियों को सिद्धियां यहीं मिला करती थीं, जिससे इसका नाम सिद्धघाट पड़ गया। माना जाता है कि यहां की मिट्टी से चर्म रोग समाप्त हो जाते हैं।
7. उमा घाट: यह घाट ग्वारीघाट का ही एक हिस्सा है। माता पार्वती द्वारा यहां तपस्या करने के कारण भी इसे उमाघाट कहा जाता है। इसका निर्माण मुख्यत: महिलाओं के लिए कराया गया है।
नर्मदा चिंतक पं. द्वारका नाथ शुक्ल शास्त्री के अनुसार सब घाटों का अपना धार्मिक महत्व है। प्रत्येक के साथ प्राचीन कथाएं जुड़ीं हैं। नर्मदा के हर तट पर देवों का वास होता है। और इसका उल्लेख शास्त्रों में भी मिलता है।
Hindi News / Jabalpur / अद्भुत हैं नर्मदा के ये 7 घाट, यहां वास करती हैं रहस्मयी शक्तियां