अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक ने बनवाया शिव मंदिर
पड़ती है सूरज की पहली और अंतिम किरण
विश्व भ्रमण के बाद की गई प्राण प्रतिष्ठा
डॉ. कोष्टा बताते हैं वर्ष 1996 में शिवालय की नींव रखी गई थी। इसके अंदर तांबे का छह फीट का शिवलिंग स्थापित है। इसे भारत समेत अमरीका और अन्य देशों की यात्रा कराने के बाद प्राण प्रतिष्ठित किया गया था। सबसे नीचे द्वादश ज्योतिर्लिंग, इसके बाद एकादश रुद्र, एक हजार शिवलिंग और शिखर पर अद्र्धनारीश्वर विराजित किए गए हैं।
घूमने वाले नवग्रह
मंदिर में सूर्य सहित नवग्रह स्थापित किए गए हैं, जो घूमते हैं। समय चक्र के अनुसार इनकी दिशा को बदला जा सकता है। इनके निर्माण के लिए खास तकनीक का इस्तेमाल किया गया है।
दर्पणों का बेहतरीन प्रयोग
पहाड़ी पर पत्थरों के बीच बने लगभग 14 हजार वर्गफीट के मंदिर परिसर में कई देवी-देवताओं की प्रतिमाएं हैं। प्रत्येक प्रतिमा के साथ कई समतल दर्पणों को समानांतर लगा कर मिरर इन्फाइनाइट का प्रयोग किया गया है। इसमें प्रतिमा की इमेज तो दिखाई देती है, साथ ही दर्पण से ऊर्जा से टकरा कर लौटती है और दर्शनार्थी को मिलती है।
दर्शन करने आ चुकी हैं कई हस्तियां
इस शिवालय में पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन, रावतपुरा सरकार समेत कई देशी-विदेशी हस्तियां दर्शन करने आ चुकी हैं।