साइंस कॉलेज जबलपुर के कैमिस्ट्री प्रो. एके वाजपेयी के अनुसार सावन के दौरान बारिश का सीजन पूरे शबाब पर होता है। सनलाइट कम होती है। जिसके चलते डाइजेशन में हैल्प करने वाले एंजाइम जनरेट नहीं हो पाते हैं। खास तौर पर पेप्सिन और डाइसटेस 37 डिग्री पर एक्टिव रहते हैं।
बरसात या चौमासे के समय टैम्प्रेचर लो होने से इनकी एक्टिविटीज कम हो जाती है। दूसरी ओर बीमारियां भी इसी समय बढ़ जाती हैं। व्रत में खाए जाने वाले फ्रूट्स विशेषकर पपीते में पेप्सिन बॉडी को मिलता है। मौसम की संधि या ऋतु परिवर्तन के समय बॉडी चेंजेस का जल्द एक्सेप्ट नहीं कर पाती, इसलिए ऋषि-मुनियों के द्वारा इन दिनों व्रत रखने की परम्पराएं शुरू की गईं। दूसरी ओर व्रत रखने से बॉडी को हैल्दी फूड मिलता है जो इम्यून सिस्टम को मजबूती देता है।
घाघ-भड्डरी भी बोले
चैते गुड़ बैसाखे तेल, जेठे पन्थ अषाढ़े बेल, सावन साग न भादों दही, क्वांर करेला न कार्तिक मही, अगहन जीरा पूसे धना, माघ मिश्री फागुन चना, ई बारह जो देय बचाय, वाहि घर बैद कबौं न जाय। ये कहावत घाघ और भड्डरी पहले ही लिख गए हैं, जिसमें हिन्दी महीनों के दौरान क्या खाएं और क्या न खाएं बताया गया है।