पक्षी विशेषज्ञों का मानना है कि गौरैया कम नहीं हुई है, बल्कि वह शहरों से गांवों की ओर स्थानांतरित हो गई है, क्योंकि उन्हें शहरी परिवेश में न तो उन्हें भोजन मिल रहा है और न ही उनके रहने के लिए नेस्टिंग की व्यवस्था हो पा रही है। कच्चे और खपरैल के मकान अब शहरों में देखने नहीं मिलते हैं। कॉन्क्रीट के महल बन गए हैं और खिड़कियां भी पैक हो चुकी हैं। ऐसे में वे शहरी वातावरण में अनुकूलन नहीं कर पा रही हैं। इस विश्व गौरैया दिवस आप संकल्प करें कि अपने घरों में आर्टिफिशियल नेस्टिंग करें या गौरैया के लिए भोजन की व्यवस्था करें तो वह दिन दूर नहीं होगा, जब शहर में भी वापस गौरैया की चहचहाहट लौट आएगी।
आर्टिफिशियल नेस्टिंग करें
पक्षी विशेषज्ञ एवं सिटिजन फॉर नेचर सोसाइटी के डॉ. विजय सिंह यादव का कहना है कि शहर के लोग आर्टिफिशियल नेस्टिंग कर गौरैया को अपने अंगना बुला सकते हैं। घर बनाते वक्त पक्षियों के घोंसले के लिए कुछ व्यवस्था जरूर करें। पक्षी विशेषज्ञ जगत फ्लोरा बताते हैं कि शहर में जो घर कच्चे बने हुए हैं या जिन लोगों ने आर्टिफिशियल घोंसले बनाए हैं, वहां पर गौरैया आती है।
ऐसी है स्थिति
– साल 2000 से 2010 के बीच शहर में लाखों की संख्या में गौरैया देखती जाती थीं।
– साल 2011 से 2017 के बीच इनकी स्थिति हजारों में बची है
– शहर के 5 से 10 किमी की दूर गांवों में दिख रहा है इनका अस्तित्व
– गौरैया नहीं होने से 80 फीसदी तक कीटों का इन्फेक्शन बढ़ गया है