जबलपुर

इस मंदिर में है भगवान श्री कृष्ण के वस्त्र और 60 तीर्थों की शिलाएं, स्पर्ष से होती है धनप्राप्ति

मंदिर में भगवान श्री कृष्ण द्वारा पहने गए वस्त्रों के टुकड़े और उनके 1650 तीर्थों में से 60 तीर्थ स्थलों की शिलाएं मौजूद हैं।

जबलपुरAug 12, 2020 / 04:43 pm

Faiz

इस मंदिर में है भगवान श्री कृष्ण के वस्त्र और 60 तीर्थों की शिलाएं, स्पर्ष से होती है धनप्राप्ति

जबलपुर/ बाई का बगीचा में स्थित श्री गोपाल मंदिर का निर्माण एवं संचालन श्री जयकृष्णी पंथ द्वारा किया जाता है। मंदिर के महंत का कहना है कि, मंदिर में भगवान श्री कृष्ण द्वारा पहने गए वस्त्रों के टुकड़े और उनके 1650 तीर्थों में से 60 तीर्थ स्थलों की शिलाएं मौजूद हैं।

 

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जबलपुर में मौजूद हैं भगवान श्री कृष्ण के 60 तीर्थों की शिलाएं

ऐसा माना जाता है कि, भगवान श्रीकृष्ण के 1650 तीर्थ हैं। उन्हीं में से 60 तीर्थों की शिलाएं इस मंदिर में मौजूद हैं। इन शिलाओं में मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश के गोवर्धन पर्वत, महाराष्ट्र के रिद्धपुर, माहुर, फलटन, डोमेग्राम, बेलापुर, गुजरात के द्वारिका और मध्य प्रदेश के उज्जैन मुख्य रूप से शामिल हैं। जहां-जहां भगवान के चरण रज पड़े वहां के पत्थरों (पाषाण) को विग्रह के रूप में तैयार कर ये पंथ भगवान की प्रतिमा के पास स्थापित किये गए हैं।

 

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मंदिर में भगवान श्री कृष्ण के वस्त्रों के टुकड़े भी हैं मौजूद

भगवान से जुड़ी वस्तुओं को इस पंथ के महंत बड़ी हिफाजत से रखते हैं। महंत कृष्णराज बाबा के मुताबिक, इस पंथ के मुख्य 13 महंत थे, जिनके पास भगवान के इस्तेमाल की हुई कोई न कोई वस्तु थी। इस परंपरा में गुरु अपने शिष्यों को समान रूप से पंथी धन देता है। जबलपुर में भगवान के वस्त्र के रूप में रेशम के छोटे-छोटे टुकड़े हैं। इन्हें खासतौर पर मढ़वाकर कई परतों के अंदर संरक्षित किया गया है।

 

 

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1980 में हुआ था मंदिर स्थापित

बाई का बगीचा स्थित श्री गोपाल मंदिर को साल 1980 में स्थापित किया गया था। हालांकि, प्रतिमा को 1984 में स्थापित किया गया था। छिंदवाड़ा में जन्मे महंत दत्तराज बाबा भक्तों के अनुरोध पर 1967 में अमरावती आश्रम महाराष्ट्र से आए थे। गीता मंदिर में सेवा करते हुए 1972 में निवृत्त हो गए थे। यहां सुंदरलाल पांडे ने कुछ जमीन दान में दी और कुछ जमीन उन्होंने खरीदी। अपनी जमीन बेचकर और क्षेत्रीय लोगों की मदद से 1980 में मंदिर बनवाया। इसके बाद 1993 में गोलोकवासी हुए। इसके बाद महंत कृष्णराज और परिवार ने 2002 में मंदिर का कलशारोहण किया।

 

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