नेहा सेन, जबलपुर. राष्ट्रीय ध्वज किसी भी देश की शान का प्रतीक होता है। हमारा प्यारा तिरंगा भी हमारी की आन, बान और शान है…। इसके तीन रंगों में समरसता और समृद्धि का संदेश समाहित है। कम ही लोग जानते होंगे कि तिरंगा यूं ही हम सबका गौरव नहीं बन गया। इस स्थान पर पहुंचने के लिए उसे भीएक लम्बी यात्रा तय करनी पड़ी। स्वामी विवेकानंद जी की शिष्या सिस्टर निवेदिता ने 1904 में राष्ट्रीय ध्वज के चयन के गौरवशाली सफर की शुरुआत की, जिसको आजादी के समय अंतिम रूप मिला। आइए जानते हैं तिरंगे के चयन की रोचक और भावपूर्ण कहानी… See Also – पांचवीं के छात्र रहकर गांधीजी के क्विट इंडिया एक्शन के ये हैं हीरो 1904 में बना एक ध्वज सन् 1904 में पहली बार राष्ट्रीय ध्वज सामने आया, जो स्वामी विवेकानंद की शिष्य सिस्टर निवेदिता ने बनाया था। ध्वज सिस्टर निवेदिता के नाम भी पहचाना जाता था। ध्वज का रंग लाल और पीला था। इसमें लाल रंग को स्वतंत्रता के संग्राम और पीले को विजय से दर्शाया था। इसमें बांग्ला में वंदे मातरम् भी अंकित था। फिर आए तीन रंग सन् 1906 में एक और ध्वज बनाया गया। तीन रंगों वाले इस झंडे में तीन बराबर पट्टियां थीं। इसमें ऊपर नीला, बीच में पीला और नीचे लाल रंग था। यह एक तिरंगा झंडा था और इसमें तीन बराबर पट्टियां थीं, इसमें सबसे ऊपर नीली पट्टी में आठ सितारे बनाए गए थे। देवनागरी भाषा में वंदे मातरम् लिखा हुआ था। See Also – महमूद गजनवी को परास्त करने की खुशी में बनाया था यह 107 फीट ऊंचा शिव मंदिर ये भी एक रूप सन् 1907 में ध्वज 1906 से मिलता जुलता बनाया गया। इसमें नीले, पीले और लाल रंग के साथ फूलों के आकार को भी बड़ा किया गया। इसी साल मैडम भीकाजी कामा ने झंडा बनाया, जिसे 22 अगस्त को स्टूटग्राट में लहराया गया। इसमें वंदे मातरम् के साथ सबसे ऊपर हरा, बीच में भगवा और आखिरी में लाल रंग था। चरखे का सुझाव सन् 1916 में पिंगली वैंकया ने एक ध्वज डिजाइन किया। उन्होंने महात्मा गांधी से मिलकर ध्वज को लेकर उनकी मंजूरी मांगी। महात्मा गांधी ने ध्वज पर भारत के आर्थिक उत्थान के प्रतीक के रुप में चरखे का चिन्ह बनाने का सुझाव दिया। चार नीली पट्टियां 1917 में बाल गंगाधर तिलक द्वारा बनाई गई लीग ने एक नया झंडा बनाया। झंडे के ऊपर यूनियन का जैक बनाया गया और पांच लाल और चार नीली पट्टियां को बनाया गया। इसमें सप्तऋषि तारों और अर्धचंद्र भी बनाया गया। See Also – यहां हुई है MOHENJO DARO की शूटिंग, कई फिल्मों में है यह लोकेशन एकता का यह प्रतीक सन् 1921 में राष्ट्रपिता द्वारा सभी समुदायों के अनुसार ध्वज बनाए जाने पर विचार किया गया है। इसके बाद नया ध्वज बना जो कि तीन रंग का था। इसमें सबसे ऊपर सफेद, मध्य में हरा और लाल रंग को शामिल किया गया। इसमें एक चरखे को भी फैलाया गया जो एकता का प्रतीक था। यह ध्वज आयरलैंड की तर्ज पर बनाया गया था। See Also – MOHENJO DARO: जब ऋतिक पर झपटा मगरमच्छ, तो चीख पड़े लोग फिर गेहुंआ रंग सन् 1931 में सांप्रदायिक सद्भाव को ध्यान में रखते हुए नया झंडा बना। इसमें लाल की जगह गेहुआ रंग रखा गया। इसके बाद भी अन्य समुदाय नाखुश थे। एेसे में पिंगली वैंकया ने एक ध्वज दोबारा बनाया। इसमें सबसे ऊपर भगवा रंग, बीच में सफेद रंग और नीचे हरा रंग रखा गया। सफेद पट्टी में चरखा बना था। इसी साल कांग्रेस कमेटी की बैठक में इस ध्वज को आधिकारिक तौर पर अपनाया गया। See Also – जंगल में जख्मी ग्रामीण को देसी शराब पिलाकर वन अधिकारियों ने बचाई जान… अंत में आया अशोक चक्र सन् 1947 में आजादी मिलने के बाद राष्ट्रीय ध्वज पर चर्चा के लिए राजेन्द्र प्रसाद की अध्यक्षता में एक कमेटी बनी। इसके तिरंगे के संशोधन पर पुन: बात हुई। अधिक बदलाव न करते हुए चरखे की जगह 24 तीलियों वाला अशोक चक्र बनाया गया। तब से अब तक यही तिरंगा हमारी शान है। हमारे गौरव का प्रतीक है।