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मंडला रोड निवासी अधिवक्ता अमिताभ गुप्ता ने २०१३ में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि निचली अदालतों में अपराधिक मामलों में पेश की जाने वाली मेडिको लीगल व पोस्ट मार्टम रिपोर्ट हाथ से लिखी हुई पेश की जाती है। जल्दबाजी में लिखी गई इन रिपोट्र्स की हस्तलिपि इतनी खराब होती है कि सामान्यत: इन्हें पढऩा और समझना टेढ़ी खीर होता है। कई मामलों में तो कोर्ट को भी इन रिपोट्र्स को समझने में दिक्कत होती है। याचिकाकर्ता ने स्वयं अपना पक्ष रखते हुए कोर्ट को बताया कि बेतरतीबी से बनाई गई इन रिपोट्र्स से महत्वपूर्ण अपराधिक मामलों के विचारण में अनावश्क विलंब होता है।
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न्याय प्रबंधन के दृष्टिकोण से भी ये रिपोटर््स असुविधाजनक हैं। उन्होंनेे कहा कि निचली अदालत में विचारण के दौरान अक्सर यह देखा जाता है कि अधिकांश डॉक्टर स्वयं की लिपि में लिखी रिपोर्ट को भी समझने-समझाने में असफल रहते हैं।
मेडिको लीगल साक्ष्य अहम-
उन्होंने तर्क दिया कि आपराधिक मामलों में मेडिको लीगल साक्ष्य अत्यधिक महत्वपूर्ण होते हैं। अक्सर इनमें एमएलसी व पीएम रिपोर्ट के आधार पर फैसले होते हैं। लेकिन खराब लिखावट व अपठनीय होने के चलते कई बार इनके अर्थ को समझने में त्रुटि की आशंका रहती है। सुनवाई के बाद कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिए कि अपराधिक मामले में चार्जशीट पेश करने वाले अधिकारी को मूल हस्तलिखित एमएलसी व पीएम रिपोर्ट के साथ उसकी टाइप की गई या कम्प्यूटारइज्ड प्रति भी पेश करने के निर्देश दिए जाएं। ताकि तीन माह की समयावधि में इनका पालन सुनिश्चित किया जा सके।