जबलपुर

आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों पर बने संग्रहालय का पीएम नरेंद्र मोदी करेंगे उद्घाटन, 1857 की क्रांति से जुड़ा है इतिहास

Birsa Munda Jayanti : भगवान बिरसा मुंडा जयंती के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जबलपुर के आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों के 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में दिए गए योगदान पर बने संग्रहलाय का वर्चुअल उद्घाटन करेंगे।

जबलपुरNov 14, 2024 / 04:25 pm

Akash Dewani

Birsa Munda Jayanti : मध्य प्रदेश के जबलपुर में 15 नवंबर भगवान बिरसा मुंडा की जयंती के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी राजा शंकर शाह और उनके बेटे कुंवर रघुनाथ शाह की स्मृति में बने संग्रहालय का वर्चुअल उद्घाटन करेंगे। यह संग्रहालय 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में आदिवासी नायकों के योगदान और बलिदान की गाथा को समर्पित है। यह संग्रहालय उसी जगह बनाया गया है जहां दोनों वीर पिता और बेटे ने देश की आज़ादी के लिए अपनी जान दी थी। साल 2021 में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ के तहत इस संग्राहलय की आधारशिला रखी थी।

गुमनाम नायकों को सम्मान देने का प्रयास

संग्रहालय में आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल करते हुए शंकर शाह और रघुनाथ शाह के संघर्ष और बलिदान को दिखाया गया है। मध्य प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार द्वारा मिलकर बनाए गए इस संग्रहालय का उद्देश्य भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले उन गुमनाम नायकों को सम्मानित करना है जिन्हें इतिहास में उचित मान्यता नहीं मिल सकी। इस पहल के तहत विशेषकर आदिवासी नायकों के योगदान को उजागर करने पर ध्यान दिया गया है। इस संग्रहालय में पांच प्रमुख गैलरी हैं, जो गोंडवाना जनजाति की सांस्कृतिक धरोहर के साथ-साथ 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की महत्वपूर्ण घटनाओं को भी दर्शाती हैं।
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कौन थे राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह?

1857 की क्रांती में अपने प्राण न्योछावर करने वाले वीर राजा शंकर शाह और उनके पुत्र रघुनाथ शाह गढ़ा मंडला और जबलपुर के गोंड राजवंश के प्रतापी राजा संग्राम शाह के वंशज थे | राजा शंकर शाह और उनके पुत्र कुंवर रघुनाथ शाह ने 1857 की क्रांती में उनकी कविताओं ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की आग भड़का दी। डिप्टी कमिश्नर ई. क्लार्क ने एक जासूस की मदद से 14 सितंबर 1857 को शाम 4 बजे दोनों को पकड़ लिया। अगले तीन दिनों तक मुकदमा चलाने के बाद दोनों वीरों राजा फांसी की सजा सुना दी गई। 18 सितंबर 1857 को सुबह 11 बजे उन्हें तोप के मुंह पर बांध दिया गया और उन्होंने देश के लिए अपने प्राण त्याग दिए।

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