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जबलपुर

इस शहर में बने हथियारों और तोप से मारे जाते हैं पाकिस्तान के आतंकी- जाने खासियत

आयुध निर्माणी दिवस आज- निजीकरण नीति और कम होते कर्मचारियों से फीकी पड़ रही चमक, शहर के कारोबार को भी लगा झटका

जबलपुरMar 18, 2018 / 10:41 am

Lalit kostha

पाकिस्तान चीन भी रखते हैं इस शहर पर नजर, यहां बनते हैं सेना के घातक हथियार

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ज्ञानी रजक@जबलपुर. चार आयुध निर्माणियां इस शहर की पहचान हैं। इनका गौरवशाली इतिहास रहा है। 80 के दशक में रोजगार मुहैया करवाने में इनकी बड़ी भूमिका थी। शहर के कारोबार में भी निर्माणियों के कर्मचारियों का योगदान है। हालांकि अब कर्मचारियों की संख्या कम हो गई हैं। निजीकरण की नीति से भी निर्माणियों की साख खतरे में है। वहीं पड़ोसी देश पाकिस्तान और चीन जैसे देश भी इस शहर के काम और निर्माण से रूबरू हो चुके हैं। छोटे मोटे युद्ध और फायरिंग में यहीं का गोला बारूद उपयोग किया जाता है।

रक्षा उत्पादों का निजी क्षेत्र में उत्पादन की नीति और लगातार कम होती कर्मचारियों की संख्या आयुध निर्माणियों की सबसे बड़ी समस्या बन गई है। इसका सीधा असर रोजगार के साथ ही शहर के व्यापार पर हो रहा है। उसमें गिरावट आई है। इनमें लगातार कर्मचारियों की संख्या घटी है। दूसरी तरफ उत्पादन लक्ष्य कई गुना बढ़ा है। 80 के दशक में चारों निर्माणियों में 45 हजार से ज्यादा कर्मचारी हुआ करते थे, लेकिन अब इनकी संख्या घटकर 12 हजार के करीब सिमटकर रह गई हैं।

नॉन कोर नीति ताजी समस्या है। २५० से ज्यादा उन उत्पादों को शामिल कर लिया गया है जो आयुध निर्माणियों में बनते हैं। वीकल फैक्ट्री भी इस नीति का शिकार बनी है। इसके तीन प्रमुख उत्पाद स्टालियन, एलपीटीए सैन्य और वाटर बाउजर को शामिल किया गया है। अब इसके उत्पादन के लिए टेंडर किए जाएंगे। जिसकी सबसे कम बोली होगी, उसे उत्पादन का ऑर्डर मिल सकेगा।

सरकार की आयुध निर्माणियों के प्रति नीति से इनकी साख गिरी है। देश के औद्योगिक क्षेत्र में इन्हें अलग रूप में देखा जाने लगा है। शहर में रोजगार के माध्यम निर्माणियां थी।
– बी गुहाठाकुरता, अतिरिक्त महासचिव एआईडीईएफ

सरकार, सेना और बडे़ औद्योगिक घराने तीनों मिलकर आयुध निर्माणियों के भविष्य को संकट में डाल रहे हैं। सरकार यह समझने को तैयार नहीं है कि इनका कितना योगदान रहा है। अब उनका निजीकरण किया जा रहा है।
– अरुण दुबे, संयुक्त सचिव आईएनडीडब्ल्यूएफ

आयुध निर्माणियों के कर्मचारियों की बदौलत शहर का कारोबार जिंदा था। कई क्षेत्रो में तो बाजार ही इसी वजह से आबाद हुए। कर्मचारियों के घटने से कारोबार भी बहुत नीचे आया है।
– हेमराज अग्रवाल, मानसेवी मंत्री महाकोशल चेम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री

शहर की पहचान, लेकिन घट रहीं इकाइयां
आयुध निर्माणियों से यहां की लघु इकाइयों को भी बड़ा काम मिलता है। यह सालाना करीब 300 करोड़ का होता है। लेकिन अब केवल ४० से ४२ इकाइयां रह गई हैं। पहले वीएफजे के ज्यादातर कलपुर्जें अधारताल एवं रिछाई औद्योगिक क्षेत्र में लगी इन्हीं इकाइयों में होता था। पहले की तुलना में अब आधा काम मिल रहा है।

शान से निकला सुरंगरोधी और बुलेटपू्रफ वाहनों का काफिला
सड़क पर शनिवार को सुरंगरोधी और बुलेटपू्रफ सहित सेना के वाहनों के काफिले को देखकर लोगों में कौतूहल रहा। वीकल फैक्ट्री प्रशासन की ओर से आयुध निर्माणी दिवस के उपलक्ष्य में परंपरानुसार वाहनों की रैली निकाली गई। गन कैरिज फैक्ट्री (जीसीएफ) में देश की सबसे बड़ी तोप धनुष सहित दूसरे उत्पादों और गे्र आयरन फाउंड्री (जीआइएफ) में हैंड ग्रेनेड और एरियल बम की बॉडी की प्रदर्शनी लगाई गई। इस बार आयुध निर्माणी खमरिया (ओएफके) में बमों की प्रदर्शनी नहीं लगी। प्रभात फेरी और वॉइस ऑफ खमरिया का आयोजन चर्चा में रहा।

इन्होंने किया उद्घाटन
कार्यक्रमों की शुरुआत प्रभात फेरी के साथ की गई। चारों निर्माणियों में सुबह पूरे इस्टेट में यह घूमी। प्रशासनिक भवन में ध्वजारोहण एवं कर्मचारी एवं अधिकारियों का सम्मान समारोह आयोजित किया गया। ओएफके में वरिष्ठ महाप्रबंधक एके अग्रवाल, वीएफजे में वरिष्ठ महाप्रबंधक एके तिवारी, जीसीएफ में वरिष्ठ महाप्रबंधक एसके सिंह और जीआईएफ मे महाप्रबंधक डीके बंगोत्रा ने कार्यक्रम का उद्घाटन किया।

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