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जबलपुर

 इस जेल में रह चुके हैं नेताजी सुभाष चंद्र बोस, संजोकर रखी गई हैं उनकी यादें

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में नेताजी का योगदान कोई नहीं भुला सकता, उन्होंने कई बार जेल यात्राएं कीं, अंग्रेजों से लोहा लिया, उनकी यादें आज भी जिन्दा हैं..

जबलपुरAug 15, 2016 / 02:26 pm

neeraj mishra

netaji subhash chandra bose

netaji subhash chandra bose


नीरज मिश्र @ जबलपुर। तुम मुझे खून दो, मै तुम्हें आजादी दूंगा… का नारा बुलंद करने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान भुलाया नहीं जा सकता। देश के प्रति समर्पण का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वे अस्वस्थ होने के बाद भी राजनीतिक गतिविधयों में भाग लेते रहे। 104 डिग्री बुखार होने के बाद भी वे जबलपुर में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन में शामिल हुए। उन्हें कई बार जेल यात्राएं करनी पड़ी। दो बार तो उन्हें जबलपुर सेंट्रल जेल में रखा गया। जहां आज भी उनकी यादों को संजोकर रखा गया है।


नेताजी सुभाषचंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को हुआ था। उनका जबलपुर शहर से गहरा नाता है। नेताजी ने यहां आगमन के बाद ना सिर्फ जबलपुर में लोगों के अंदर नई उर्जा का संचार किया, बल्कि इतिहास भी बदल दिया। यह वही स्थल है, जहां1939 में कांग्रेस के अधिवेशन में ऐतिहासिक जीत दर्ज कर कांग्रेस का अध्यक्ष चुने जाने के बाद नेताजी ने स्वराज्य की आवाज बुलंद की थी। वे जब भी यहां आए नर्मदा के तट तिलवाराघाट जरूर जाते थे।

netaji subhash chandra bose


जबलपुर जेल का निर्माण 1818 में किया गया था। बाबू सुभाषचंद्र बोस दो बार इस जेल में बंद थे। वे इस कारागार में सोते-जागते अध्ययन करते थे। उनके साथ भाई शरत चंद्र बोस भी जेल में ही थे। सुभाष बाबू 30 मई 1932 को जबलपुर आए और 16 जुलाई 1932 को मद्रास भेजा गया। दूसरी बार 18 फरवरी 1933 वे जेल लाए गए इस दौरान उनकी स्वास्थ्य खराब था। डॉ. एसएन मिश्र ने उनकी जांच की और आंतों में टीबी होने की बात कही। उन्हें 22 मार्च 1933 को यहां से बंबई व फिर वहां से यूरोप भेज दिया गया था। नेताजी के नाम पर ही जेल का नाम रखा गया है। जबलपुर सेंट्रल जेल में आज भी उनकी यादों को संजो कर रखा गया है।


netaji subhash chandra bose

यहां थे नेताजी के दीवाने
जबलपुर में 1939 में हुए कांग्रेस के 52 वें अधिवेशन में नेताजी ने पट्टाभि सीतारमैया को 203 मतों से पराजित किया था। सीता रमैया महात्मागांधी के पसंदीदा उम्मीदवार थे। 52 वें अधिवेशन में शानदार जीत की खुशी में संस्कारधानी वासियों नेताजी को 52 हाथियों के रथ पर बैठाकर घुमाया था। इसे देखने के लिए शहर व आसपास के गावों से हजारों की तादाद में लोग पहुंचे थे। हालांकि तेज बुखार की वजह से नेताजी शिविर व जुलूस में शामिल नहीं हो पाए थे। शिविर में ही डॉ.वीआर सेन व डॉ. एम. डिसिल्वा उनका इलाज कर रहे थे। उनके अस्वस्थ होने के कारण, जुलूस में उनकी फोटो रखी गई थी। नेताजी की लोकप्रियता का आलम यह था कि उस फोटो को ही देखने के लिए हजारों की संख्या में लोग जुलूस में पहुंचे थे।

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