राजा कोकल्यदेव ने बनवाया था मंदिर
चारखम्बा स्थित बूढ़ी खेरमाई मंदिर कल्चुरिकालीन राजा कोकल्यदेव ने बनवाया था। ऐसी मान्यता है कि यहां पूजन करने से मनोकामना पूर्ण होती है। 1980 में इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया।
जवारा जुलूस होता है विशेष आकर्षण
बूढ़ी खेरमाई का जवारा जुलूस सबसे बड़ा आकर्षण का केन्द्र होता है। इसमें माता के बाने देखने के लिए हजारों की संख्या में लोग पहुंचते हैं। जानकारी के मुताबिक बाना माता के प्रति अपनी आस्था प्रकट करने का प्रतीक है। बूढ़ी खेरमाई के जवारा विसर्जन जुलूस में प्रत्येक वर्ष 700 से 800 भक्त बाना छिदाकर अपनी आस्था प्रकट करते हैं। इनमें 3 साल के बच्चे से लेकर 50 साल के व्यक्ति शामिल होते हैं। ऐसी मान्यता है कि माता का बाना छिदवाने से हर मुराद पूरी हो जाती है, यही वजह है कि साल-दर-साल बाना छिदवाने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। वहीं जिनकी मुराद पूरी हो जाती है वे भी बाना छिदाते हैं।
महिलाओं के दर्शन पर रोक
धर्माचार्यों के अनुसार मां धूमावती का स्वरूप वैधव्य यानी विधवा का स्वरूप माना जाता है। उनका वाहन कौआ है और स्वरूप बेहद विकराल व क्रूर है। देवी यूं तो हर स्वरूप में परमकल्याणी हैं, लेकिन वैधव्य स्वरूप में महिलाओं के लिए उनका दर्शन वर्जित बताया गया है। महिलाएं केवल पीठ की तरफ से उनका पूजन और वंदन कर सकती हैं। इसे शक्ति की पीठ के आराधना से जोड़कर देखा जाता है। मान्यतानुसार मां धूमावती का प्रताप है कि उनके दरबार पर की गई मनोकामना कभी अधूरी नहीं रहती।