navratri 11 colors 2017: यहां प्रतिबंधित हैं पुरुष, पूजा के हर काम करती हैं महिलाएं
१०८ वर्ष पुराना इतिहास
आजादी के पहले १९१० में गोकलपुर में रामलीला शुरू हुई, जो अब भी भक्ति और संस्कृति की अलख जगा रही है। तब कागज के मुकुट थे और रोशनी के लिए लालटेन। आम आदमी के लिए सवारी का साधन सिर्फ बैलगाड़ी था। छोटी बस्ती में घर-घर से मिली चंदे की राशि से समिति रामलीला का मंचन कर रही है। संसाधनों के अभाव में हरिहर रामलीला समिति समाज को जोड़ रही है। इस सामाजिक यज्ञ में घर-घर की आहुति पड़ रही है। १०८ वर्ष के इतिहास में ऐसे कई दौर आए, जब रामलीला मंचन बंद होने की कगार पर आया, लेकिन यह कड़ी टूटने नहीं पाई। पांच साल पहले जब पात्र निभाने वाले कम पड़ गए तो बाहर से कलाकारों को बुलाया गया। इसी दौर में बच्चों की टोली को रामलीला का हुनर सिखाकर एक बार फिर अपने दम पर मंचन की तैयारी है।
१०८ वर्ष पुराना इतिहास
आजादी के पहले १९१० में गोकलपुर में रामलीला शुरू हुई, जो अब भी भक्ति और संस्कृति की अलख जगा रही है। तब कागज के मुकुट थे और रोशनी के लिए लालटेन। आम आदमी के लिए सवारी का साधन सिर्फ बैलगाड़ी था। छोटी बस्ती में घर-घर से मिली चंदे की राशि से समिति रामलीला का मंचन कर रही है। संसाधनों के अभाव में हरिहर रामलीला समिति समाज को जोड़ रही है। इस सामाजिक यज्ञ में घर-घर की आहुति पड़ रही है। १०८ वर्ष के इतिहास में ऐसे कई दौर आए, जब रामलीला मंचन बंद होने की कगार पर आया, लेकिन यह कड़ी टूटने नहीं पाई। पांच साल पहले जब पात्र निभाने वाले कम पड़ गए तो बाहर से कलाकारों को बुलाया गया। इसी दौर में बच्चों की टोली को रामलीला का हुनर सिखाकर एक बार फिर अपने दम पर मंचन की तैयारी है।
Swine flu का कहर, डेढ़ दर्जन की मौत, विधायक भी चपेट में
बस्तीवाले करते हैं व्यवस्था
पात्रों के नाश्ते और भोजन की व्यवस्था बस्ती वालों पर है। हर दिन भगवान राम-लक्ष्मण और अन्य पात्रों का भोजन किसी न किसी के घर में में बनता है। खेरमाई मंदिर, महालक्ष्मी मंदिर, शिव मंदिर, हनुमान मंदिर जैसे छोटे मंदिरों का भी इसमें सहयोग है। रामलीला में उपयोग किए जाने वाले पर्दे, दरी चादर, बर्तन आदि सामान मंदिरों द्वारा उपलब्ध कराए गए हैं।
बस्तीवाले करते हैं व्यवस्था
पात्रों के नाश्ते और भोजन की व्यवस्था बस्ती वालों पर है। हर दिन भगवान राम-लक्ष्मण और अन्य पात्रों का भोजन किसी न किसी के घर में में बनता है। खेरमाई मंदिर, महालक्ष्मी मंदिर, शिव मंदिर, हनुमान मंदिर जैसे छोटे मंदिरों का भी इसमें सहयोग है। रामलीला में उपयोग किए जाने वाले पर्दे, दरी चादर, बर्तन आदि सामान मंदिरों द्वारा उपलब्ध कराए गए हैं।
श्रीराम सिखाते थे संगीत
समिति के उपाध्यक्ष पारस ठाकुर ने बताया कि उत्तर प्रदेश से सुरक्षा संस्थान में नौकरी करने आए मिर्जापुर के स्व. बेचूलाल पांडे ने रामलीला की शुरुआत की। उनकी पांचवीं पीढ़ी परंपरा को कायम रखे हुए है। पूर्व महंत उमाशंकर पांडे थिएटर में म्यूजिक देते थे। भगवान श्रीराम का अभिनय करने वाले अविनाश बच्चों को संगीत की शिक्षा दे रहे हैं। समिति के राकेश और दिनेश आचार्य बाई का बगीचा में रामलीला में भूमिका निभा चुके हैं। ४५ वर्ष पूर्व महंत विष्णु पांडेय के घर में रिश्तेदार की मौत होने के बाद भी उन्होंने सीता के पात्र को बखूबी निभाया। दुकान लगाने वाले साबिर खान, उस्मान कुरैशी चंदा एकत्र करते हैं। मुस्लिम एजुकेशन कमेटी दशहरा चल समारोह का स्वागत करती है। स्व. ताहिर अली कपड़े सिलते थे, जबकि दिलदार खां और डॉ. शुभान का सहयोग मिलता रहा।
हर दिन नया संदेश रामलीला समिति द्वारा दर्शकों को हर दिन एक संदेश दिया जाता है। समिति के उपाध्यक्ष पारस ठाकुर ने बताया कि शनिवार को चीनी वस्तुओं का उपयोग न करने की शपथ दिलाई गई। एक दिन पूर्व जल संरक्षण का संदेश दिया गया था। नशा मुक्ति, पर्यावरण संरक्षण, दहेज से जुड़े संदेश भी समिति द्वारा दिए जा रहे हैं।
—— शैलपुत्री पूजा- लाल रंग
नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। मां को समस्त वन्य जीव-जंतुओं का रक्षक माना जाता है। इनकी आराधना से आपदाओं से मुक्ति मिलती है।
चंद्र दर्शन- गहरा नीला
चंद्र दर्शन के दिन नीला रंग पहने। नीला रंग शांति और सुकून का परिचायक है। सरल स्वभाव वाले सौम्य व एकान्त प्रिय लोग नीला रंग पसन्द करते हैं।
ब्रह्मचारिणी पूजा- पीला
नवरात्र के दूसरे दिन मां के ब्रह्मचारिणी स्वरुप की आराधना की जाती है। माता ब्रह्मचारिणी की पूजा और साधना करने से कुंडलिनी शक्ति जागृत होती है।
चंद्रघंटा पूजा- हरा
नवरात्र के तीसरे दिन मां दुर्गा की तीसरी शक्ति माता चंद्रघंटा की पूजा अर्चना की जाती है। मां चंद्रघंटा की उपासना से भक्तों को भौतिक , आत्मिक, आध्यात्मिक सुख और शांति मिलती है।
कुष्माण्डा पूजा- स्लेटी
नवरात्र के चौथे दिन मां पारांबरा भगवती दुर्गा के कुष्मांडा स्वरुप की पूजा की जाती है। माना जाता है कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था , तब कुष्माण्डा देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी।
स्कंदमाता पूजा- नारंगी
नवरात्र के पांचवें दिन मां स्कंदमाता की पूजा की जाती है। स्कंदमाता की उपासना से बालरूप स्कंद भगवान की उपासना अपने आप हो जाती है। नारंगी रंग ताजगी का ***** है।
कात्यायनी पूजा- सफेद
नवरात्र के छठवें दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। कात्यायन ऋषि के यहां जन्म लेने के कारण माता के इस स्वरुप का नाम कात्यायनी पड़ा।
कालरात्रि पूजा- गुलाबी
माँ दुर्गाजी की सातवीं शक्ति को कालरात्रि के नाम से जाना जाता हैं। दुर्गापूजा के सातवें दिन मां कालरात्रि की उपासना का विधान है।देवी कालरात्रि का यह विचित्र रूप भक्तों के लिए अत्यंत शुभ है।
महागौरी पूजी- आसमानी नीला
दुर्गापूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। जिनके स्मरण मात्र से भक्तों को अपार खुशी मिलती है, इसलिए इनके भक्त अष्टमी के दिन कन्याओं का पूजन और सम्मान करते हुए महागौरी की कृपा प्राप्त करते हैं।
नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। मां को समस्त वन्य जीव-जंतुओं का रक्षक माना जाता है। इनकी आराधना से आपदाओं से मुक्ति मिलती है।
चंद्र दर्शन- गहरा नीला
चंद्र दर्शन के दिन नीला रंग पहने। नीला रंग शांति और सुकून का परिचायक है। सरल स्वभाव वाले सौम्य व एकान्त प्रिय लोग नीला रंग पसन्द करते हैं।
ब्रह्मचारिणी पूजा- पीला
नवरात्र के दूसरे दिन मां के ब्रह्मचारिणी स्वरुप की आराधना की जाती है। माता ब्रह्मचारिणी की पूजा और साधना करने से कुंडलिनी शक्ति जागृत होती है।
चंद्रघंटा पूजा- हरा
नवरात्र के तीसरे दिन मां दुर्गा की तीसरी शक्ति माता चंद्रघंटा की पूजा अर्चना की जाती है। मां चंद्रघंटा की उपासना से भक्तों को भौतिक , आत्मिक, आध्यात्मिक सुख और शांति मिलती है।
कुष्माण्डा पूजा- स्लेटी
नवरात्र के चौथे दिन मां पारांबरा भगवती दुर्गा के कुष्मांडा स्वरुप की पूजा की जाती है। माना जाता है कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था , तब कुष्माण्डा देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी।
स्कंदमाता पूजा- नारंगी
नवरात्र के पांचवें दिन मां स्कंदमाता की पूजा की जाती है। स्कंदमाता की उपासना से बालरूप स्कंद भगवान की उपासना अपने आप हो जाती है। नारंगी रंग ताजगी का ***** है।
कात्यायनी पूजा- सफेद
नवरात्र के छठवें दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। कात्यायन ऋषि के यहां जन्म लेने के कारण माता के इस स्वरुप का नाम कात्यायनी पड़ा।
कालरात्रि पूजा- गुलाबी
माँ दुर्गाजी की सातवीं शक्ति को कालरात्रि के नाम से जाना जाता हैं। दुर्गापूजा के सातवें दिन मां कालरात्रि की उपासना का विधान है।देवी कालरात्रि का यह विचित्र रूप भक्तों के लिए अत्यंत शुभ है।
महागौरी पूजी- आसमानी नीला
दुर्गापूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। जिनके स्मरण मात्र से भक्तों को अपार खुशी मिलती है, इसलिए इनके भक्त अष्टमी के दिन कन्याओं का पूजन और सम्मान करते हुए महागौरी की कृपा प्राप्त करते हैं।
— Sunday, September 24, 2017 —