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यह है मामला
आईटीआई जबलपुर के पूर्व प्राचार्य मदन मोहन शकरगायें ने यह याचिका दायर की थी। इसमें कहा गया कि मदनमहल पहाड़ी में पौधरोपण, बागवानी करने की योजना के चलते सैकड़ों परिवारों को हटा दिया गया। विस्थापितों को तिलहरी में बसाया गया। जहां उनके हालात भयावह हैं।आसन्न वर्षाकाल के लिहाज से इन विस्थापितों को प्लेटफॉर्म, धर्मशाला व अन्य संस्थाओं में आश्रय देकर उनकी सुरक्षा, भोजन व अन्य व्यस्थाएं की जाएं। शकरगायें ने स्वयं पैरवी करते हुए तर्क दिया कि महज बागवानी के लिए नगर निगम ने इतने लोगों को उजाड़ दिया। इसलिए उन्हें वापस उसी जगह पर बसाया जाए, जहां वे पहले रह रहे थे।
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बागवानी के लिए नहीं कोर्ट के आदेश पर हटे
इस पर शासकीय हिमांशु मिश्रा ने तर्क दिया कि बागवानी के लिए, बल्कि हाईकोर्ट के आदेश के चलते उक्त अतिक्रमणकारी हटाए गए। जबकि याचिकाकर्ता ने इस तथ्य का अपनी याचिका या बहस में कोई उल्लेख ही नहीं किया। अंतिम सुनवाई के बाद कोर्ट ने पाया कि तथ्य छिपाकर भ्रमित करने की मंशा से याचिका दायर की गई। याचिका खारिज करते हुए कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर इसके लिए कॉस्ट लगा दी।