इस निर्णय ने सूचना आयोग और लोक सूचना अधिकारी के निर्देश को निरस्त कर दिया है। मामले में सूचना आयोग और लोक सूचना अधिकारी दोनों ने ही आदेश दिया था कि सरकारी अधिकारियों की सैलरी की जानकारी गोपनीय मानी जाएगी। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को एक महीने में सूचना उपलब्ध कराने के निर्देश दिए। याचिका की सुनवाई के दौरान जस्टिस विवेक अग्रवाल ने कहा, सरकारी अधिकारियों के वेतन की जानकारी का सार्वजनिक महत्व है, इसलिए इसे गोपनीय नहीं माना जा सकता।
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याचिकाकर्ता एमएम शर्मा ने छिंदवाड़ा वन परिक्षेत्र में कार्यरत दो कर्मचारियों के वेतन भुगतान के संबंध में जानकारी मांगी थी। लोक सूचना आयोग ने उन्हें जानकरी देने से इनकार कर दिया। इसके पीछे उन्होंने कारण बताया कि यह जानकारी निजी और तृतीय पक्ष की जानकारी है इसीलिए यह सूचना उन्हें उपलब्ध नहीं कराई जाएगी। लोक सूचना आयोग का कहना था कि संबंधित कर्मचारियों से उनकी सहमति मांगी गई थी, लेकिन उनका उत्तर न मिलने पर जानकारी गोपनीय होने के कारण उपलब्ध नहीं कराई जा सकती। यह भी पढ़ें
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