Kangana Ranaut : केन्द्र सरकार ओर से उपस्थित डिप्टी सॉलिसिटर जनरल ने कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा और न्यायमूर्ति विनय सराफ की पीठ के समक्ष स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया कि फिल्म को सीबीएफसी द्वारा प्रमाणित नहीं किया गया है। इसके मद्देनजर, न्यायालय ने सीबीएफसी को फिल्म के ट्रेलर के संबंध में उसके समक्ष प्रस्तुत अभ्यावेदन पर विचार करने, अधिनियम और उसके तहत बनाए गए नियमों का पालन करने और फिर फिल्म को प्रमाण पत्र देने का निर्देश देते हुए, कंगना रनौत की फिल्म इमरजेंसी की आसन्न रिलीज को चुनौती देने वाली जनहित याचिका (पीआईएल) का निपटारा कर दिया।
Kangana Ranaut अन्य कोई आदेश नहीं
जनहित याचिका का निपटारा करने के साथ ही न्यायालय ने कोई अन्य आदेश पारित करने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि बोर्ड में फिल्म को प्रमाण पत्र देने के लिए सक्षम प्राधिकारी है। न्यायालय ने कहा कि इस मुद्दे पर ‘पूर्वाग्रह’ करने का कोई मतलब नहीं है। Kangana Ranaut : उल्लेखनीय है कि जनहित याचिका दायर करने वाले याचिकाकर्ता जबलपुर सिख संगत और गुरु सिंह सभा इंदौर ने न्यायालय का रुख किया था, जिसमें दावा किया गया था कि फिल्म में ऐसे दृश्य हैं जो सिख समुदाय के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। इस पर सोमवार को खंडपीठ ने केंद्र सरकार और केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था।
Kangana Ranaut : याचिकाकर्ताओं ने अधिवक्ता नरिंदर पाल सिंह रूपराह के माध्यम से कहा कि फिल्म में कुछ घटनाओं का चित्रण सिख समुदाय को गुमराह और बदनाम कर सकता है। ‘इमरजेंसी’ 1975 के आपातकाल के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर आधारित फल्म है। फिल्म का प्रीमियर 6 सितंबर 2024 को निर्धारित किया गया था।
Kangana Ranaut : याचिकाकर्ताओं का कहना था कि फिल्म में विशिष्ट ऐतिहासिक घटनाओं का चित्रण, विशेष रूप से ‘खालिस्तान’ शब्द का उपयोग, सिख समुदाय के लिए नकारात्मक परिणाम हो सकता है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि फिल्म की कहानी भेदभाव को बढ़ावा दे सकती है और पगड़ी पहनने वाले छोटे सिख बच्चों को ‘खालिस्तानी’ करार दिया जा सकता है। याचिकाकर्ता फिल्म की अभिनेत्री और निर्माता कंगना रनौत से सिख समुदाय की भावनाओं को कथित रूप से ठेस पहुंचाने के लिए बिना शर्त माफी मांगने की मांग कर रहे थे। उन्होंने तर्क दिया कि फिल्म में सिख समुदाय का चित्रण न केवल ऐतिहासिक रूप से गलत है, बल्कि अपमानजनक भी है।