दवा निर्माण में होता है उपयोग
आज एलौपैथिक के साथ-साथ आयुर्वेद इलाज पद्धति को अपनाने के प्रति लोगों का रुझान बढ़ा है। बीमारियों के इलाज में आयुर्वेदिक दवाओं का इस्तेमाल करना बेहतर भी माना जाता है। जिन औषधीयों पौधों से दवा तैयार होती है, उनकी खेती का क्षेत्रफल बढ़ते जा रहा है। यही नहीं नए किसान भी इसकी खेती के प्रति उत्साहित हैं। बड़ी तादाद में औषधी बनाने वाली कंपनियां हाथोंहाथ इन उपज को खरीदती हैं। लेकिन जबलपुर में अभी छोटी-मोटी मंडी भी नहीं है।
इन औषधीय पौधों की खेती
सतावर, सफेद मूसली, सर्पगंधा, अश्वगंधा, सतावर, स्टीबिया, कोलियस, कलौजी, तुलसी आदि की खेती हो रही है। इसमें सबसे ज्यादा रकबा सतावर और कलौजी और अश्वगंधा का है।
इन जगहों पर लगी फसल
पनागर तहसील के कटैया, निभौरा, मोहारी, रानीताल, भर्रा, झगरा, शहपुरा तहसील के बेलखेड़ी, केवलारी, सिहोरा तहसील के धनकी, पाटन तहसील के परतरी, कुंडम के आमानाला आदि स्थान प्रमुख है।
क्या कहते हैं किसान
औषधीय खेती के लिए जिले की जलवायु अनुकूल है। मैने खुद 30 एकड़ से ज्यादा रकबा में सतावर लगाई है। उसकी पैदावार भी बहुत अच्छी है लेकिन समस्या विक्रय को लेकर है। एक मंडी तो जबलपुर में बनना चाहिए।
एसके गर्ग, कटैया पनागर
हम परंपरागत खेती से हटकर औषधीय खेती करना चाहते हैं। कई किसान उत्साहित हैं, लेकिन उनका हौसला सिर्फ इस बात से डगमगाता है कि वे उपज लगा लें। पैदावार भी अच्छी हो जाए लेकिन इसे बेचेंगे कहां?
अरुण उपाध्याय, ग्राम झगरा पनागर
अश्वगंधा और कलौजी की मांग बहुत है इसलिए इसकी खेती कर रहे हैं। जबलपुर में मंडी नहीं होने से औषधीय खेती के प्रति किसान हतोत्साहित होते है। मंडी बन जाए तो इसका रकबा बहुत तेजी से बढेग़ा।
विजय पटेल, ग्राम कंजई मझौली
औषधिय पौधों की खेती का रकबा जिले में बढ़ते जा रहा है। किसान इसके प्रति उत्साहित भी हैं। जहां तक मंडी का सवाल है तो जिला प्रशासन के संज्ञान में यह बात लाई जाएगी ताकि यह सुविधा जबलपुर में हो सके।
डॉ नेहा पटेल, उप संचालक उद्यानिकी विभाग