नगर निगम कर्मचारियों के वेतन, जीपीएफ, पेंशन पर हर महीने 14 करोड़ रुपए राशि खर्च करता है। इसी प्रकार स्ट्रीट लाइट, जल शोधन संयंत्रों के संचालन से लेकर बाकी के बिजली बिल पर लगभग 5 करोड़ रुपये मासिक, सफाई व्यवस्था पर 1 करोड़ के लगभग राशि खर्च होती है। इन मदों की कुल राशि 20 करोड़ हो जाती है। विकास कार्यों के लिए वर्ष 2005-06 में नगर निगम ने एडीबी से 350 करोड़ रुपए का कर्ज लिया था। इसकी वार्षिक किश्त 18 करोड़ रुपए का निगम को भुगतान करना होती है। ऐसे में विकास कार्य कैसे होंगे, अब यही सवाल पूछा जा रहा है।
केंद्र व राज्य सरकार पर निर्भरता
विकास कार्यों के लिए निगम को काफी हद तक केंद्र व राज्य सरकार पर भी निर्भर रहना पड़ता है। केन्द्र की योजना अमृत फेस 2 में निगम को सीवर लाइन, तालाब व उद्यानों के उन्नयन, जलापूर्ति व्यवस्था के विस्तार के लिए राशि मिलना है। इसके अलावा निगम को राज्य शासन से समय-समय पर चुंगी क्षति पूर्ति की राशि मिलती है। जिस पर काफी हद तक सड़कों के रखरखाव से लेकर निगम के अन्य खर्च निर्भर करते हैं।
स्थायी सम्पत्ति भरपूर
हालांकि, निगम के पास स्थायी सम्पत्ति भरपूर है। इनके आधार पर विकास कार्यों के लिए लोन आसानी से मिल जाता है। निगम के पास स्थायी सम्पत्ति के नाम पर 650 हेक्टेयर से ज्यादा जमीन डुमना नेचर पार्क में, खंदारी, परियट जलाशय, किराये पर संचालित दो हजार से ज्यादा दुकान, निगम का मुख्यालय भवन, भंडार शाखा की जमीन, आसपास के कर्मचारी क्वार्टर, सभी 16 जोन कार्यालय भवन व रमनगरा, ललपुर, भोंगाद्वार व रांझी में जल शोधन संयंत्र, तीन सौ से ज्यादा उद्यान हैं।