जस्टिस विवेक अग्रवाल की सिंगल बेंच ने 22 पृष्ठीय आदेश पारित कर इस सम्बंध में असमर्थता व्यक्त की। कोर्ट ने ओबीसी एडवोकैट्स वेल्फेयर एसोसिएशन की याचिका निराकृत करते हुए कहा कि राज्य सरकार चाहे तो शासकीय अधिवक्ताओ की नियुक्तियों में आरक्षण के नियम लागू कर सकती है।
ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन की ओर से अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर व विनायक प्रसाद शाह, उदय कुमार ने कोर्ट को बताया कि पूर्व में इसी मुद्दे को लेकर एक अन्य याचिका दायर की गई थी।
जिस पर सुनवाई के दौरान राज्य शासन ने शासकीय अधिवक्ता के पद को लोकसेवक का पद न मानते हुए आरक्षण नियम लागू करने से इनकार कर दिया था।लिहाजा, नए सिरे से राज्य सरकार के नियम की संवैधानिक वैधता को कठघरे में रखते हुए याचिका दायर की गई है।
कहा गया कि 17 फरवरी 2022 को महाधिवक्ता कार्यालय जबलपुर, इंदौर एवं ग्वालियर मे शासकीय अधिवक्ताओं के विभन्न पदों पर 140 अधिवक्ताओं की नियुक्ति की गई थी। इनमे आरक्षण के प्रावधान लागू नहीं किए गए।
तर्क दिया गया कि उक्त नियुक्तियों मे अनुसूचित जाति वर्ग से एक भी अधिवक्ता को शासकीय अधिवक्ता के रूप मे नियुक्ति नही दी गई। उक्त नियुक्तियां संविधान के अनुछेद 14,15 एवं 16 से असंगत हैं। साथ ही मध्य प्रदेश (लोक सेवा) आरक्षण अधिनियम 1994 की धारा 4 का उल्लंघन भी है।
याचिका में अधिनियम की धारा 14 के तहत उक्त नियुक्तियों को शून्य घोषित करने का आग्रह किया गया । तर्क दिया गया कि आरक्षित वर्ग को समुचित प्रतिनिधित्व न मिलने के चलते इस वर्ग से अब तक मप्र हाईकोर्ट में एक भी जज नियुक्त नहीं हुआ। राज्य सरकार की ओर से अपनी नीति को सही ठहराया गया। कहा गया कि ये सरकारी नौकरी नहीं, बल्कि सरकार की पैरवी का नीतिगत मामला है। अंतिम सुनवाई के बाद 6 अप्रैल को कोर्ट ने अपना निर्णय बाद में सुनाने की व्यवस्था दी थी।