पहले दिन देवी शैलपुत्री व महाविद्या मां काली की होगी उपासना
वामाचार साधना केंद्र थे बाजनामठ गोलकीमठ और बूढ़ी खेरमाई मंदिर पहुंचेंगे तंत्र साधक नगर के शक्तिपीठों में देवी के विशेष शृंगार किए जाएंगे। दस दिन तक शक्तिपूजा व अनुष्ठान होंगे। गुप्त नवरात्र के पहले दिन देवी शैलपुत्री व महाविद्या माता काली की उपासना होगी। बाजनामठ, चौसठ योगिनी मंदिर व बूढ़ी खेरमाई मंदिर में रात्रिकाल में तंत्र साधक पहुंचेंगे।
वामाचार साधना केंद्र थे बाजनामठ गोलकीमठ और बूढ़ी खेरमाई मंदिर पहुंचेंगे तंत्र साधक नगर के शक्तिपीठों में देवी के विशेष शृंगार किए जाएंगे। दस दिन तक शक्तिपूजा व अनुष्ठान होंगे। गुप्त नवरात्र के पहले दिन देवी शैलपुत्री व महाविद्या माता काली की उपासना होगी। बाजनामठ, चौसठ योगिनी मंदिर व बूढ़ी खेरमाई मंदिर में रात्रिकाल में तंत्र साधक पहुंचेंगे।
तंत्र विद्या का अनुसंधान केंद्र था बाजनामठ शास्त्री नगर में पांच सौ वर्ष पुराना भैरवनाथ का मंदिर बाजनामठ तंत्र साधना के लिए जाना जाता है। यह देश के प्रमुख तांत्रिक मंदिरों में गिना जाता है। पहाड़, तालाब के साथ ही इस मंदिर से प्राकृतिक नजारा देखते ही बनता है। मेडिकल कॉलेज के आगे बने इस मंदिर की बनावट भी अद्भुत है। जो हर मंदिर में देखने नहीं मिलती। क्योंकि इसकी हर ईंट शुभ नक्षत्र में मंत्रों द्वारा सिद्ध करके जमाई गई है। मंदिर के पुजारी बताते हैं कि ऐसे मंदिर पूरे देश में कुल तीन हैं। एक बाजनामठ, दूसरा काशी और तीसरा महोबा में हैं। बाजनामठ को भैरव की क्रीड़ा स्थली भी कहा जाता है। इतिहासकार डॉ. राणा के अनुसार यही कारण है कि गोलकीमठ विवि (वर्तमान में चौसठ योगिनी मंदिर भेड़ाघाट) में तंत्र विद्या प्राप्त करने वाले इस मंदिर में साधना के लिए पहुंचते थे। यहां भैरव का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए तांत्रिक कई दिन तक धूनी रमाए रहते थे। यह तंत्र विद्या का एक बड़ा अनुसंधान केंद्र था। गुप्त नवरात्र पर यहां शक्ति व भैरव के उपासक बड़ी संख्या में पहुंचेंगे। गुप्त नवरात्र में रात के समय साधक माता की साधना भी करते हैं। यह गुप्त होने की वजह से वे मंदिर में सिर्फ पूजा करते हैं।
राजा संग्रामशाह करते थे उपासना चारखम्बा स्थित बूढ़ी खेरमाई माता के प्राचीन मंदिर में स्थापित करीब 1500 साल पुरानी धूमावती देवी की प्रतिमा शहर की सबसे पुरानी देवी प्रतिमा है। धूमावती देवी को गोंड राजा सर्वाधिक पूज्य मानते थे। धूमावती माता को देवी की सातवीं महाविद्या माना जाता है। इतिहासकारों के अनुसार इस मंदिर में गोड राजा संग्रामशाह गुप्त नवरात्र पर माता धूमावती की साधना, आराधना करते थे। मान्यता है कि यहां देवी के चरणों में नारियल रखने से देवी मनोकामना पूरी करती हैं। मनोकामना पूरी होने पर नारियल स्वत: नीचे गिर जाता है। संस्कारधानी के शक्तिपीठों में यह मंदिर महत्वपूर्ण स्थान रखता है। पुजारी सौरभ दुबे बताते हैं कि गुप्त नवरात्र में धूमावती माता बूढ़ी खेरमाई के दर्शन व पूजन के लिए भक्तों का तांता लगेगा।
भेड़ाघाट स्थित चौसठ योगिनी मंदिर में दी जाती थी तंत्र विज्ञान की शिक्षा इतिहासकार डॉ. आनन्द सिंह राणा ने बताया कि भेड़ाघाट स्थित चौसठ योगिनी मंदिर तंत्र विज्ञान की शिक्षा का बड़ा केंद्र था। इसका निर्माण 10वीं शताब्दी के दौरान कल्चुरी शासक युवराजदेव प्रथम के द्वारा कराया गया। युवराजदेव के बाद 12वीं शताब्दी के दौरान शैव परंपरा में पारंगत गुजरात की रानी गोसलदेवी ने चौसठ योगिनी मंदिर में गौरी-शंकर मंदिर का निर्माण कराया। डॉ. राणा के अनुसार यह मंदिर काल गणना और पंचांग निर्माण का सर्वश्रेष्ठ स्थान माना जाता था। यहां ज्योतिष, गणित, संस्कृत साहित्य और तंत्र विज्ञान का अध्ययन करने के लिए देश और विदेश से छात्र आया करते थे। 10वीं शताब्दी में यह मंदिर वैदिक अध्ययन केंद्र हुआ करता था। यहां ग्रह और नक्षत्रों की गणना के साथ आयुर्वेद की शिक्षा भी दी जाती थी। बड़ी संख्या में तन्त्रसाधक गुप्त नवरात्र में साधना करते थे। चौसठ योगिनी मंदिर के पुजारी का कहना है कि गुप्त नवरात्र पर अब यहां तन्त्र साधना तो नहीं होती, लेकिन बड़ी संख्या में साधक साधना आरम्भ करने के पूर्व रात्रि में पूजन के लिए यहां आते हैं।