
Anand Gujrat Amul plant
बोरसद में कांग्रेस की जड़ें 1923 के सरदार वल्लभ पटेल के सत्याग्रह से जुड़ी हुईं हैं। ब्रिटिश शासन में दंडात्मक कानून लागू किए जाने के खिलाफ छेड़े गए आंदोलन ने तत्कालीन हुकूमत की नींव हिला दी थी। तब महात्मा गांधी ने पटेल को बोरसद का राजा कहकर संबोधित किया था। तब के बोरसद में अब बड़ा बदलाव आ चुका है। बोरसद के किसान धनी भाई कहते हैं बुजुर्गों से सुनते रहे हैं कि सरदार पटेल ने उन्हें जेल जाने से बचाया था। अब यह इलाका खेती से समृद्ध हुआ है। वे समस्या भी सुनाते हैं कि मंडी नहीं होने से व्यापारियों के भरोसे ही रहना पड़ता है। हालांकि आणंद पास होने से सब्जी और फल के दाम अच्छे मिल रहे हैं। चुनावी माहौल पर बात करते हुए मानिक भाई कहते हैं, सभी का प्रचार चल रहा है। रिवाज कायम रहेगा या टूटेगा अभी कुछ कहा नहीं जा सकता है।
कांग्रेस की चाल
कांग्रेस के प्रचार अभियान की चर्चा कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी को चौंका दिया था। अक्टूबर में आणंद की ही चुनावी सभा में उन्होंने कार्यकर्ताओं को चेताते हुए कहा था कि कांग्रेस नई चाल चल रही है। सभा सम्मेलन में वह नजर नहीं आ रही है। गांव-गांव जाकर बैठकें कर रही है। पीएम के इस बयान के बाद भाजपा कितनी सतर्क हुई है, इस पर अंकलाव सीट के असोदर के सब्जी कारोबारी विष्णु भाई कहते हैं भाजपा कार्यकर्ता गांव आने लगे हैं। लेकिन सड़क को छोड़ ज्यादा काम नहीं हुआ है। सिंचाई के लिए अब भी बोरवेल पर ही निर्भर रहना पड़ता है। कांग्रेस विधायक हमेशा उपलब्ध रहते हैं, इसलिए लोगों से उनका संपर्क अच्छा है। भाजपा के लोग चुनाव में ही मिलते हैं। विष्णु बताते हैं असोदर को किसानों ने बड़ी सब्जी मंडी में बदल दिया है। व्यापारी भी यहीं आकर माल ले जाते हैं। इलाके की अर्थव्यवस्था इसी पर टिकी हुई है।
चार सीटों में कांटे का मुकाबला
आणंद की सभी सात सीटों में चुनाव के दूसरे चरण में 8 दिसंबर को वोट डाले जाएंगे। 2017 के विधानसभा चुनाव में आणंद जिले की सात सीटों में से पांच सीटें कांग्रेस के खाते में गईं थीं। भाजपा को दो सीटों पर संतोष करना पड़ा था। इनमें एक भाजपा की उमरेठ और कांग्रेस की दो सीटों आणंद व सोजित्रा में हार जीत का अंतर ढाई हजार से कम वोटों का था। तो पेटलाद में कांग्रेस ने नए उम्मीदवार को मौका दिया है। आम आदमी पार्टी के चुनाव में उतरने से इन चार सीटों पर कांटे का मुकाबला हो गया है। आणंद के होटल व्यवसायी विपुल कहते हैं, आप जिसके वोट काटेगी, उसी को सीट का नुकसान उठाना पड़ेगा।
खंभात में भाजपा का दबदबा
माही नदी के तट पर बसे खंभात की चर्चा नर्मदा के अरब सागर में मिलने और आयलफील्ड के कारण भी होती है। आखिरी छोर की इस विधानसभा सीट पर 1990 से भाजपा का दबदबा है। कांग्रेस ने प्रत्याशी बदलने से लेकर अब तक जितने भी प्रयोग किए वह असफल रहे हैं।
Published on:
05 Dec 2022 02:10 am
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