जबलपुर

इस मंत्र के जाप से दुर्गा जी होती हैं प्रसन्न, भर देती हैं खाली खजाना

ये उपाय बेहद सरल हैं और परिणाम आश्चर्यजनक

जबलपुरMar 15, 2018 / 03:47 pm

Lalit kostha

ये उपाय बेहद सरल हैं और परिणाम आश्चर्यजनक

जबलपुर। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार सच्चे मन से यदि विधिवत मां दुर्गा की पूजा की जाए, तो वह भक्त की मनोकामना अवश्य पूर्ण करती हैं। मां दुर्गा की पूजा के नियम कठिन अवश्य हैं, लेकिन जो भी भक्त उन्हें पूर्ण निष्ठा से कर लेता है उसकी मुराद अवश्य पूरी होती है। मां दुर्गा अपने भक्तों की शत्रुओं एवं बुरी ताकतों से भी रक्षा करती हैं। दुर्गा पूजन एवं उन्हें प्रसन्न करने से भक्त को अनगिनत लाभ होते हैं। ज्योतिषाचार्य सत्येंद्र स्वरुप शास्त्री आपको मां दुर्गा को प्रसन्न करने के कुछ शास्त्रीय उपाय बताने जा रहे हैं। ये उपाय बेहद सरल हैं और परिणाम आश्चर्यजनक।

मां से ही सृष्टि का सृजन
देवी भागवत में बतलाया गया है की इस सम्पूर्ण सृष्टि का सृजन, पालन एवं संहार करने वाली आदि शक्ति माता दुर्गा है। गौरी, काली, लक्ष्मी तथा सरस्वती ये सभी मां दुर्गा के ही विभिन्न रूप है। असुरो के अत्याचारो से तीनो लोको को मुक्ति दिलाने के कारण ही माता का नाम देवी दुर्गा पड़ा।

स्तोत्र
जय भगवति देवि नमो वरदे जय पापविनाशिनि बहुफलदे।
जय शुम्भनिशुम्भकपालधरे प्रणमामि तु देवि नरार्तिहरे॥1॥
जय चन्द्रदिवाकरनेत्रधरे जय पावकभूषितवक्त्रवरे।
जय भैरवदेहनिलीनपरे जय अन्धकदैत्यविशोषकरे॥2॥
जय महिषविमर्दिनि शूलकरे जय लोकसमस्तकपापहरे।
जय देवि पितामहविष्णुनते जय भास्करशक्रशिरोवनते॥3॥
जय षण्मुखसायुधईशनुते जय सागरगामिनि शम्भुनुते।
जय दु:खदरिद्रविनाशकरे जय पुत्रकलत्रविवृद्धिकरे॥4॥
जय देवि समस्तशरीरधरे जय नाकविदर्शिनि दु:खहरे।
जय व्याधिविनाशिनि मोक्ष करे जय वाञ्छितदायिनि सिद्धिवरे॥5॥
एतद्व्यासकृतं स्तोत्रं य: पठेन्नियत: शुचि:।
गृहे वा शुद्धभावेन प्रीता भगवती सदा॥6॥

दुर्गास्तोत्रम्
रक्ष रक्ष महादेवि दुर्गे दुर्गतिनाशिनि। मां भक्त मनुरक्तं च शत्रुग्रस्तं कृपामयि॥
विष्णुमाये महाभागे नारायणि सनातनि। ब्रह्मस्वरूपे परमे नित्यानन्दस्वरूपिणी॥
त्वं च ब्रह्मादिदेवानामम्बिके जगदम्बिके। त्वं साकारे च गुणतो निराकारे च निर्गुणात्॥
मायया पुरुषस्त्वं च मायया प्रकृति: स्वयम्। तयो: परं ब्रह्म परं त्वं बिभर्षि सनातनि॥
वेदानां जननी त्वं च सावित्री च परात्परा। वैकुण्ठे च महालक्ष्मी: सर्वसम्पत्स्वरूपिणी॥
म‌र्त्यलक्ष्मीश्च क्षीरोदे कामिनी शेषशायिन:। स्वर्गेषु स्वर्गलक्ष्मीस्त्वं राजलक्ष्मीश्च भूतले॥
नागादिलक्ष्मी: पाताले गृहेषु गृहदेवता। सर्वशस्यस्वरूपा त्वं सर्वैश्वर्यविधायिनी॥
रागाधिष्ठातृदेवी त्वं ब्रह्मणश्च सरस्वती। प्राणानामधिदेवी त्वं कृष्णस्य परमात्मन:॥
गोलोके च स्वयं राधा श्रीकृष्णस्यैव वक्षसि। गोलोकाधिष्ठिता देवी वृन्दावनवने वने॥
श्रीरासमण्डले रम्या वृन्दावनविनोदिनी। शतश्रृङ्गाधिदेवी त्वं नामन चित्रावलीति च॥
दक्षकन्या कुत्र कल्पे कुत्र कल्पे च शैलजा। देवमातादितिस्त्वं च सर्वाधारा वसुन्धरा॥
त्वमेव गङ्गा तुलसी त्वं च स्वाहा स्वधा सती। त्वदंशांशांशकलया सर्वदेवादियोषित:॥
स्त्रीरूपं चापिपुरुषं देवि त्वं च नपुंसकम्। वृक्षाणां वृक्षरूपा त्वं सृष्टा चाङ्कुररूपिणी॥
वह्नौ च दाहिकाशक्ति र्जले शैत्यस्वरूपिणी। सूर्ये तेज:स्वरूपा च प्रभारूपा च संततम्॥
गन्धरूपा च भूमौ च आकाशे शब्दरूपिणी। शोभास्वरूपा चन्द्रे च पद्मसङ्घे च निश्चितम्॥
सृष्टौ सृष्टिस्वरूपा च पालने परिपालिका। महामारी च संहारे जले च जलरूपिणी॥
क्षुत्त्‍‌वं दया त्वं निद्रा त्वं तृष्णा त्वं बुद्धिरूपिणी। तुष्टिस्त्वं चापि पुष्टिस्त्वं श्रद्धा त्वं च क्षमा स्वयम्॥
शान्तिस्त्वं च स्वयं भ्रान्ति: कान्तिस्त्वं कीर्तिरेव च। लज्जा त्वं च तथा माया भुक्ति मुक्ति स्वरूपिणी॥
सर्वशक्ति स्वरूपा त्वं सर्वसम्पत्प्रदायिनी। वेदेऽनिर्वचनीया त्वं त्वां न जानाति कश्चन॥
सहस्त्रवक्त्रस्त्वां स्तोतुं न च शक्त : सुरेश्वरि। वेदा न शक्त ा: को विद्वान् न च शक्त ा सरस्वती॥
स्वयं विधाता शक्तो न न च विष्णु: सनातन:। किं स्तौमि पञ्चवक्त्रेण रणत्रस्तो महेश्वरि॥
कृपां कुरु महामाये मम शत्रुक्षयं कुरु।

प्रथमं शैलपुत्री
मां शैलपुत्री का निर्भय आरोग्य मंत्र
विशोका दुष्टदमनी शमनी दुरितापदाम्।
उमा गौरी सती चण्डी कालिका सा च पार्वती।।

द्वितीयं ब्रह्मचारिणी
ब्रह्मचारिणी का परीक्षा में सफलता दिलाने का मंत्र
विद्याः समस्तास्तव देवि भेदाः स्त्रियः समस्ताः सकला जगत्सु।
त्वयैकया पूरितमम्बयैतत् का ते स्तुतिः स्तव्यपरा परोक्तिः।।

तृतीयं चन्द्रघण्टा
मां चंद्रघंटा का संकटनाशक मंत्र
हिनस्ति दैत्य तेजांसि स्वनेनापूर्य या जगत्।
सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्योsनः सुतानिव।।
मां चंद्रघंटा को मखाने की खीर का भोग लगायें।

कूष्माण्डा चतुर्थकम्
मां कूष्माण्डा का संतान सुख मंत्र
स्तुता सुरैः पूर्वमभीष्टसंश्रयात्तथा सुरेन्द्रेण दिनेषु सेविता।
करोतु सा नः शुभहेतुरीश्वरी शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापदः।।
मां कूष्माण्डा को अनार के रस का भोग लगायें।

पंचमम् स्कन्दमाता
स्कंदमाता का बुद्धि विकास मंत्र
सौम्या सौम्यतराशेष सौम्येभ्यस्त्वति सुन्दरी।
परापराणां परमा त्वमेव परमेश्वरी।।
स्कंदमाता को हलवे का भोग लगायें।

षष्ठम् कात्यायिनी
मां कात्यायनी का दाम्पत्य दीर्घसुख प्राप्ति मंत्र
एतत्ते वदनं सौम्यम् लोचनत्रय भूषितम्।
पातु नः सर्वभीतिभ्यः कात्यायिनी नमोsस्तुते।।
माता को नारियल के लड्डू का भोग लगायें।

सप्तमम् कालरात्रि
मां कालरात्रि का शत्रुबाधा मुक्ति मंत्र
त्रैलोक्यमेतदखिलं रिपुनाशनेन त्रातं समरमुर्धनि तेSपि हत्वा।
नीता दिवं रिपुगणा भयमप्यपास्त मस्माकमुन्मद सुरारिभवम् नमस्ते।।

महागौरी अष्टमम्
मां महागौरी का परम ऐश्वर्य सिद्धि मंत्र
सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नार

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