ganesh chaturthi 2024 : 500 साल पुराने कल्चुरिकालीन गजानन, पूरी करते हैं मनोकामना
लोग इस मंदिर को गजानन का सिद्धपीठ मानते हैं और इसके प्रति उनके मन में अगाध आस्था है। इस मंदिर की प्रतिमा वर्षों की परपरा के अनुरूप इस वर्ष भी अनन्त चतुर्दशी पर गणपति विसर्जन के लिए निकलने वाले सदर के जुलूस की अगुवाई करेगी
ganesh chaturthi 2024: संस्कारधानी के प्राचीन, ऐतिहासिक मंदिरों में भव्य और कल्चुरिकालीन प्रतिमाएं विराजमान हैं। ये नगर के धार्मिक इतिहास की साक्षी हैं। सदर क्षेत्र स्थित ऐतिहासिक गणेश मंदिर में भी ऐसी ही कल्चुरिकालीन गणपति की प्रतिमा विराजित है। मंदिर 500 वर्ष प्राचीन है। सदर क्षेत्र के लोग इस मंदिर को गजानन का सिद्धपीठ मानते हैं और इसके प्रति उनके मन में अगाध आस्था है। इस मंदिर की प्रतिमा वर्षों की परपरा के अनुरूप इस वर्ष भी अनन्त चतुर्दशी पर गणपति विसर्जन के लिए निकलने वाले सदर के जुलूस की अगुवाई करेगी। मंदिर में गजानन की पालकी सज रही है। गणेशोत्सव की तैयारियां जोरों पर हैं।
ganesh chaturthi 2024: गणेशोत्सव, गुरु पूर्णिमा पर धूम
प्रजापति ने बताया कि यहां लोगों की मन्नतें पूरी होती हैं। हर बुधवार को विशेष अनुष्ठान व पूजन होता है। गणेशोत्सव में दस दिन तक रात को महिलाओं के भजन होते हैं। इसके अलावा मन्नत पूरी होने पर भी लोग अनुष्ठान-हवन कराते हैं। यहां गुरु पूर्णिमा व गणेशोत्सव धूमधाम के साथ मनाए जाते हैं। बड़ी संया में श्रद्धालु पहुंचते हैं।
ganesh chaturthi 2024: पालकी में ले जाता है अखाड़ा
मंदिर की देखरेख करने वाले प्यारेलाल प्रजापति ने बताया कि गणेशोत्सव समापन पर सदर बाजार में निकलने वाले जुलूस में हर साल सबसे पहले नबर पर इसी गणेश मंदिर की प्रतिमा रहती है। पालकी में गजानन को ले जाया जाता है जो जुलूस का नेतृत्व करते हैं। उन्हें सलामी देकर पालकी में ले जाने के लिए क्षेत्र का प्रमुख गंगाराम उस्ताद का अखाड़ा आता है। क्षेत्र के लोग यहां के गजानन को सदर का राजा कहते हैं।
ganesh chaturthi 2024: 25 साल पहले हुआ जीर्णोद्धार
सदर की गली नबर 16 में यह प्राचीन व ऐतिहासिक गणेश मंदिर स्थित है। मंदिर के संरक्षक प्रजापति ने बताया कि वे बचपन से इस मंदिर की देख रेख कर रहे हैं। उनके पूर्वजों ने यह मंदिर बनवाया था। उनके बुजुर्ग बताते हैं कि यह मंदिर करीब 5 सौ साल पुराना है। पहले यहां खप्परवाला मंदिर का भवन था। क्षेत्रीयजनों के सहयोग से 25 साल पहले मंदिर का जीर्णोद्धार व पुनर्निर्माण किया गया। मूर्ति के लिए सिंहासन स्थापित किया गया।
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