इनसे लगता है हत्या दोष
नर्मदा चिंतक समर्थ भैयाजी सरकार के अनुसार गणेश प्रतिमाओं का निर्माण जब तक प्राकृतिक चीजों से होता है, तब तक वे पुण्यदायी होती हैं। लेकिन प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी प्रतिमाएं देखने की सुंदर हैं, बाकी ये पर्यावरण के लिए जहर का काम करती हैं। इनका विसर्जन जब तालाबों, नदियों या किसी भी जल स्रोत में किया जाता है तो वहां के जलीय जीवों का जीवन संकट में पड़ जाता है। जिससे जीव हत्या का दोष लगता है। जो शास्त्र सम्मत उचित भी नहीं है। पूजन और मूर्ति की सुंदरता के चक्कर में हम पाप के भागीदार बन रहे हैं। पुण्य मिलने के बजाये हमें कई प्रकार के दोष लग रहे हैं। हम डरा नहीं रहे बल्कि यही सच है।
शहर में गणेशोत्सव पर घर-घर में मूर्तियां स्थापित की जाती है। इसके चलते बड़ी संख्या में मूर्तियों की बिक्री होती है। इस मौके पर कुछ व्यापारी प्लास्टर ऑफ पेरिस और कैमिकल रंगों की मूर्तियां बेचकर मोटा मुनाफे कमाने की फिराक में रहते है। इनके विसर्जन से पानी जहरीला बन जाता है। पर्व करीब आने के साथ ही शहर में पीओपी से मूर्तियों की बाहर से खेप आना शुरू हो गई है। लेकिन मूर्तियों की जांच और उनके विरुद्ध कार्रवाई ठप है।
जिम्मेदारों पर अतिरिक्त काम –
पर्व से पहले मूर्तियों में पीओपी और कैमिकल का उपयोग न हो, इसकी जांच का जिम्मा जिला प्रशासन, नगर निगम और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड पर है। सूत्रों के अनुसार जिला प्रशासन के अधिकारी और कर्मचारी चुनाव संबंधी कार्यों में व्यस्त है। नगर निगम के अधिकारी जांच में दिलचस्पी नहीं ले रहे है। संयुक्त टीम नहीं बन पान से प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी भी जांच नहीं कर पा रहे है। कलेक्टर की ओर से मूर्तियों के निर्माण में पीओपी के उपयोग और बिक्री रोकने के लिए साल 2018 में धारा 144 लागू की गई लेकिन मैदान में अमला नहीं उतरने से प्रतिबंधित सामग्री से निर्मित मूर्तियां बेचने वाले बेखोफ नजर आये थे।
सघन बस्तियों के बीच गोदाम
पीओपी की मूर्तियों की कीमत अपेक्षाकृत कम होती है। सूत्रों के अनुसार पीओपी से तैयार मूर्तियों की बाहर से भी बनकर कम दामों में शहर में सप्लाई की जाती है। इन मूर्तियों को रखने के लिए सघन बस्ती के बीच गोदाम बना गए है। इनमें अभी से पीओपी की मूर्तियां लाकर रख ली गई है।