ज्योतिर्विद जनार्दन शुक्ला के अनुसार चार्तुमास में देवता शयन करते हैं। इस कारण विवाह, उपनयन संस्कार, गृह प्रवेश, कर्ण भेदन, गृहारम्भ जैसे मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। सनातन धर्म संस्कृति में मुहूर्त देखकर सात फेर लिए जाते हैं। गुरू और शुक्र ग्रह अस्त होने के कारण इन दिनों में मांगलिक कार्यक्रम नहीं होते हैं। देवशयनी एकादशी के बाद 8 नवम्बर को देवोत्थानी एकादशी होगी और 18 नवम्बर से वैवाहिक मुहूर्त शुरू होंगे। देवशयनी एकादशी से पहले शादियों के मुहूर्त हैं। भड़ली नवमीं 10 नवम्बर को मांगलिक कार्यक्रमों के लिए अबूझ मुहूर्त हैं। भड़ली नवमी को दिन में भी सात फेरे की रस्में होंगी। हालांकि कुछ पचांगों में ग्रहों की स्थिति के कारण 12 जुलाई को भी वैवाहिक मुहूर्त हैं। उसके बाद चार माह तक शादियों की तैयारी होगी लेकिन मांगलिक कार्यक्रमों की शुरूआत नहीं होगी।
गुरु पूर्णिमा और श्रावण मास
16 जुलाई को गुरु पूर्णिमा की उपासना की जाएगी। इसी दिन वर्ष का पहला चंद्रग्रहण लगेगा। पूर्णिमा के अगले दिन 17 जुलाइ से श्रावण मास का शुभारंभ होगा। एक माह तक लोग शिवालयों में भगवान शिव का जलाभिषेक, रूद्राभिषेक एवं महाआरती करेंगे। संस्कारधानी के श्रावण में नर्मदा तट से कांवड़ यात्राएं निकाली जाती हैं। नर्मदा जल से कांवड़ में जल लेकर कांवडि़एं प्रमुख शिवालयों में जलाभिषेक करने जाते हैं। जबकि, श्रावण के सभी सोमवार को संस्कारधानी के श्रद्धालु शारदा मंदिर मदन महिल में झंडा चढ़ाने जाते हैं। सोमवार के दिन शारदा चौक से मंदि तक एक किमी के दायरे में लोग ही लोग नजर आते हैं। रंगे हुए बांसों पर झंडे बांधकर श्रद्धालु गाजे-बाजे के साथ शारदा मंदिर में जाते हैं। वहीं मार्ग मेंं लोग स्टॉल लगाकर प्रसाद वितरित कर पुण्य अर्जित करते हैं।