दर्शनीय होता है जवारा जुलूस-
मंदिर की खासियत यहां भक्तों द्वारा मनोकामना पूरी होने पर चढ़ाए जाने वाले बाने हैं। मंदिर में हर साल इनका भंडार लग जाता है। बूढ़ी खेरमाई का जवारा जुलूस सबसे बड़ा आकर्षण का केन्द्र होता है। इसमें माता के बाने देखने के लिए हजारों की संख्या में लोग पहुंचते हैं। पंडा राजू महाराज के मुताबिक बाना माता के प्रति अपनी आस्था प्रकट करने का प्रतीक है। बूढ़ी खेरमाई के जवारा विसर्जन जुलूस में प्रत्येक वर्ष 700 से 800 भक्त बाना छिदाकर अपनी आस्था प्रकट करते हैं। इनमें 3 साल के बच्चे से लेकर 50 साल के वयस्क व्यक्ति शामिल होते हैं। बानो की लंबाई भी 11-21 फिट तक होती है। सबसे बड़े बाने को 11-21 भक्त एक साथ धारण करते हैं। यह दृश्य रोंगटे खड़ कर देता है। ऐसी मान्यता है कि माता का बाना छिदवाने से हर मुराद पूरी हो जाती है, यही वजह है कि साल-दर-साल बाना छिदवाने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। वहीं जिनकी मुराद पूरी हो जाती है वे भी बाना छिदाते हैं।
राजा कोकल्यदेव ने बनवाया था मंदिर –
इतिहासकारों का मानना है चारखंबा स्थित बूढ़ी खेरमाई मंदिर कल्चुरिकालीन है। इतिहासकार डॉ आनन्द सिंह राणा कहते हैं कि उपलब्ध प्रमाणों के अनुसार इसे कल्चुरि राजा कोकल्यदेव ने बनवाया था। ऐसी मान्यता है कि यहां पूजन करने से मनोकामना पूर्ण होती है। यह स्थान सदियों से सनातन धर्मावलंबियों के आस्था का केन्द्र है। 1980 में इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया।
पीछे है मूल प्रतिमा-
धर्माचार्यों के अनुसार मां धूमावती का स्वरूप वैधव्य यानी विधवा का स्वरूप माना जाता है। उनका वाहन कौआ है और स्वरूप बेहद विकराल व क्रूर है। देवी यूं तो हर स्वरूप में परमकल्याणी हैँ, लेकिन वैधव्य स्वरूप में महिलाओं के लिए उनका दर्शन वर्जित बताया गया है। महिलाएं केवल पीठ की तरफ से उनका पूजन और वंदन कर सकती हैं। इसे शक्ति की पीठ के आराधना से जोड़कर देखा जाता है। यहां विराजी देवी की मूल प्रतिमा सैंड स्टोन से निर्मित है। लगातार जल ढारने से इस प्रतिमा के नष्ट होने की आशंका थी। इसका रूप भी विकराल है। इसीलिए इसे पीछे कर इसके सामने देवी की सौम्य मुद्रा वाली नयी प्रतिमा स्थापित की गई है।