कथाव्यास ने कहा कि अखिल ब्रह्मांड के नायक महादेव हैं और वे ही श्रृष्टि के पालनकर्ता हैं। परमात्मा के प्रति समर्पण में ही सच्चा सुख है। परमात्मा की भक्ति और विश्वास जीवन के अशुभ कर्मों को शुभ में परिवर्तित कर देते हैं। जीव यदि अच्छे समय में प्रभु का स्मरण करें तो बुरे समय में सद्मार्ग दिखाने स्वयं परमात्मा आ जाएंगे। प्रभु की कृपा हो तो अमंगल भी मंगल ? बन जाता है।
ब्रह्माण्ड पुराण – ब्रह्माण्ड पुराण में 12000 श्र्लोक तथा पू्र्व, मध्य और उत्तर तीन भाग हैं। मान्यता है कि अध्यात्म रामायण पहले ब्रह्माण्ड पुराण का ही एक अंश थी जो अभी एक प्रथक ग्रंथ है। इस पुराण में ब्रह्माण्ड में स्थित ग्रहों के बारे में वर्णन किया गया है। कई सूर्यवँशी तथा चन्द्रवँशी राजाओं का इतिहास भी संकलित है। सृष्टि की उत्पत्ति के समय से ले कर अभी तक सात मनोवन्तर (काल) बीत चुके हैं जिन का विस्तरित वर्णन इस ग्रंथ में किया गया है। परशुराम की कथा भी इस पुराण में दी गयी है। इस ग्रँथ को विश्व का प्रथम खगोल शास्त्र कह सकते है। भारत के ऋषि इस पुराण के ज्ञान को इण्डोनेशिया भी ले कर गये थे जिस के प्रमाण इण्डोनेशिया की भाषा में मिलते है।