जबलपुर

राजनीती में भूचाल: भाजपा के कई दिग्गज सवर्ण नेताओं ने एक साथ दिया इस्तीफा, चुनाव में होगी मुश्किल

राजनीती में भूचाल: भाजपा के कई दिग्गज सवर्ण नेताओं ने एक साथ दिया इस्तीफा, चुनाव में होगी मुश्किल

जबलपुरSep 10, 2018 / 02:04 pm

Astha Awasthi

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जबलपुर। बीती 6 सितंबर को अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) कानून पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को केंद्र सरकार द्वारा पलटे जाने के विरोध में सवर्ण संगठनों द्वारा एक दिवसीय ‘भारत बंद’ किया गया। इस भारत बंद का लगभग समूचे मध्यप्रदेश में व्यापक असर रहा। हालांकि, इस दौरान प्रदेश में छिटपुट घटनाओं को छोड़कर कोई अप्रिय घटना नहीं हुई। किसी के भी हताहत होने की खबर नहीं है लेकिन इस दौरान भाजपा पार्टी में काफी ज्यादा उठापटक देखने को मिली।

इन्होंने दिया इस्तीफा

बता दें कि कटनी में जनपद अध्यक्ष कन्हैया तिवारी ने भाजपा की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देने की अधिकृत घोषणा कर दी। इतना ही नहीं यहां के करीब छह नेताओं ने भाजपा की सदस्यता छोड़ दी है। इनमें कई सरपंच और पंच भी शामिल हैं। सदस्यता छोड़ने के बाद भाजपा पार्टी को बड़ा झटका लगा है। बताया जा रहा है कि सदस्यता छोड़ने वाले कई नेताओं का ग्रामीण क्षेत्रों में अच्छा खासा प्रभाव है। इनके इस्तीफे ने भाजपा संगठन को चिंता में डाल दिया है।

कन्हैया तिवारी ने बताया, क्या है काला कानून

बता दें कि पार्टी की प्राथमिक सदस्यता छोड़ने के बाद जनपद अध्यक्ष कन्हैया तिवारी ने इस बात को स्वीकार भी कर लिया कि उन्होंने सदस्ता तोड़ दी है। उनके साथ कई और लोगों ने भी सदस्यता को छोड़ा है। इन लोगों की भी भारतीय जनता पार्टी में बड़ी आस्था थी और इनका भी ग्रामीण क्षेत्रों में अच्छा प्रभाव है। बता दें कि कन्हैया तिवारी का सदस्या छोड़ने का वीडियो भी काफी वायरल हो रहा है। कन्हैया तिवारी का कहना है कि किसी भी निर्दोष या कमजोर व्यक्ति को सताने वाले को निश्चित तौर पर सजा मिलनी चाहिए, लेकिन सच्चाई की जांच के बिना ही किसी को जेल में डाल देना। उसकी प्रतिष्ठा को धूल में मिला देना किसी भी तरीके से न्याय नहीं है। यह पूरी तरह से काला कानून है। भाजपा ने इसके संशोधन पर मुहर लगाकर प्रबुद्ध वर्ग की अनदेखी की है। इस कानून को वापस लिया जाना चाहिए।

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क्या है SC-ST एक्ट

अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लोगों पर होने वाले अत्याचार और उनके साथ होनेवाले भेदभाव को रोकने के मकसद से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम, 1989 बनाया गया था. जम्मू कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में इस एक्ट को लागू किया गया. इसके तहत इन लोगों को समाज में एक समान दर्जा दिलाने के लिए कई प्रावधान किए गए और इनकी हरसंभव मदद के लिए जरूरी उपाय किए गए. इन पर होनेवाले अपराधों की सुनवाई के लिए विशेष व्यवस्था की गई ताकि ये अपनी बात खुलकर रख सके. हाल ही में एससी-एसटी एक्ट को लेकर उबाल उस वक्त सामने आया, जब सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून के प्रावधान में बदलाव कर इसमें कथित तौर पर थोड़ा कमजोर बनाना चाहा।

किया था यह बदलाव

सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट के बदलाव करते हुए कहा था कि मामलों में तुरंत गिरफ्तारी नहीं की जाएगी. कोर्ट ने कहा था कि शिकायत मिलने पर तुरंत मुकदमा भी दर्ज नहीं किया जाएगा. शीर्ष न्यायालय ने कहा था कि शिकायत मिलने के बाद डीएसपी स्तर के पुलिस अफसर द्वारा शुरुआती जांच की जाएगी और जांच किसी भी सूरत में 7 दिन से ज्यादा समय तक नहीं होगी. डीएसपी शुरुआती जांच कर नतीजा निकालेंगे कि शिकायत के मुताबिक क्या कोई मामला बनता है या फिर किसी तरीके से झूठे आरोप लगाकर फंसाया जा रहा है। इस मामले में सरकारी कर्मचारी अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर सकते हैं।

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अब ऐसा होगा SC/ST एक्ट

एससीएसटी संशोधन विधेयक 2018 के तहत अब धारा 18A जोड़ी जाएगी। इसके जरिए पुराने कानून को हटा दिया। इस तरीके से सुप्रीम कोर्ट द्वारा किए गए प्रावधान रद्द हो जाएंगे। मामले में केस दर्ज होते ही गिरफ्तारी का प्रावधान है। साथ ही आरोपी को अग्रिम जमानत भी नहीं मिल सकेगी। आरोपी को हाईकोर्ट से ही नियमित जमानत मिल सकेगी। जो भी मामला होगा उसकी जांच इंस्पेक्टर रैंक के पुलिस अफसर करेंगे।

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