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जबलपुर

इन श्लोक में समाई है कृष्ण की शक्तियां, ज्ञान से मिल जाता है ब्रह्माण्ड

इन श्लोक में समाई है कृष्ण की शक्तियां, ज्ञान से मिल जाता है ब्रह्माण्ड

जबलपुरJan 30, 2019 / 10:22 am

Lalit kostha

janmashtami, ganesh chaturthi, bhadrapada ekadashi vrat puja vidhi

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जबलपुर. पुलिस कॉलोनी गढ़ा में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा में स्वामी राम प्रपन्नाचार्य ने संगीतमयी कथा सुनायी तो श्रद्धालु भाव विभोर हो गए। व्यास पीठ से उन्होंने कहा कि संत के क्षण और अन्न के कण भाग्यवान मनुष्य को ही मिलते हैं। भगवान के चरणों में समर्पण से आनंद की प्राप्ति होती है।
कथा व्यास ने कहा कि श्रीमद् भागवत की भक्ति, ज्ञान, जप सत्संग से सुख-शांति और पुण्य प्राप्ति होती है। कथा में मुख्य यजमान गोविंद मेहरा, श्रीराम टंडन ने व्यास पूजन किया। कथा में डॉ. अजय फौजदार, अमोल सिंह राजपूत, राजेश पटेल, सुशील शर्मा, महेश चौबे, कृष्ण कुमार तिवारी मौजूद थे।

चार श्लोकों मेें समाई है संपूर्ण भागवत-

पुराणों के मुताबिक, ब्रह्माजी द्वारा भगवान नारायण की स्तुति किए जाने पर प्रभु ने उन्हें सम्पूर्ण भागवत-तत्त्व का उपदेश केवल चार श्लोकों में दिया था। आइये जानते हैं कौन हैं वे चार श्लोक, जिनके पाठ से पूरी भागवत पाठ का फल मिलेगा।

श्लोक- 1
अहमेवासमेवाग्रे नान्यद यत् सदसत परम।
पश्चादहं यदेतच्च योSवशिष्येत सोSस्म्यहम

अर्थ- सृष्टि से पूर्व केवल मैं ही था। सत्, असत या उससे परे मुझसे भिन्न कुछ नहीं था। सृष्टी न रहने पर (प्रलयकाल में) भी मैं ही रहता हूं। यह सब सृष्टीरूप भी मैं ही हूँ और जो कुछ इस सृष्टी, स्थिति तथा प्रलय से बचा रहता है, वह भी मैं ही हूं।

श्लोक-2
ऋतेSर्थं यत् प्रतीयेत न प्रतीयेत चात्मनि।
तद्विद्यादात्मनो माया यथाSSभासो यथा तम:

अर्थ- जो मुझ मूल तत्त्व को छोड़कर प्रतीत होता है और आत्मा में प्रतीत नहीं होता, उसे आत्मा की माया समझो। जैसे (वस्तु का) प्रतिबिम्ब अथवा अंधकार (छाया) होता है।

श्लोक-3
यथा महान्ति भूतानि भूतेषूच्चावचेष्वनु।
प्रविष्टान्यप्रविष्टानि तथा तेषु न तेष्वहम॥

अर्थ- जैसे पंचमहाभूत (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश) संसार के छोटे-बड़े सभी पदार्थों में प्रविष्ट होते हुए भी उनमें प्रविष्ट नहीं हैं, वैसे ही मैं भी विश्व में व्यापक होने पर भी उससे संपृक्त हूं।

श्लोक-4
एतावदेव जिज्ञास्यं तत्त्वजिज्ञासुनाSSत्मन:। अन्वयव्यतिरेकाभ्यां यत् स्यात् सर्वत्र सर्वदा॥

अर्थ- आत्मतत्त्व को जानने की इच्छा रखनेवाले के लिए इतना ही जानने योग्य है की अन्वय (सृष्टी) अथवा व्यतिरेक (प्रलय) क्रम में जो तत्त्व सर्वत्र एवं सर्वदा रहता है, वही आत्मतत्व है।

पुराणों के मुताबिक, इस चतु:श्लोकी भागवत के पाठ करने या फिर सुनने से मनुष्य के अज्ञान जनित मोह और मदरूप अंधकार का नाश हो जाता है और वास्तविक ज्ञान रूपी सूर्य का उदय होता है।

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