एक सिक्के के दो पहलू
मेडिकल कॉलेज जबलपुर के शिशु शल्य चिकित्सा विभाग के प्राध्यापक डॉ विकेश अग्रवाल कहते हैं कि एक सच्चा मित्र बहुत कुछ सिखाता है। अर्पण (डॉ अर्पण मिश्रा, कैंसर सर्जन) से मेरी 25 वर्ष पहले से दोस्ती है। आज हम एक सिक्के के दो पहलू की तरह हैं। हम दोनों ने अपने शुरुआती वर्षों में सर्जरी के क्षेत्र में जबलपुर को आगे ले जाने का कठोर और सफल प्रयास किया जो इस मित्रता के कारण ही फलीभूत हो पाया। कई मौके आए जब परिवार के बाद दुनिया में केवल मित्र ही मददगार साबित हुआ।
दोस्त पहले हैं, फिर हसबैंड-वाइफ
दोस्ती प्यार में बदले ये जरूरी नहीं है लेकिन दोस्त साथ रहे तो जीवन प्यार से भर जाता है। आरती विश्वकर्मा और शेखर केवट की दोस्ती कुछ ऐसी ही है। आरती बताती हैं कि जब वे 1999 मे 6वीं कक्षा की छात्रा थीं और शेखर 7वीं कक्षा में थे। दोनों कृषि नगर स्कूल में पढ़ाई करते थे। वहीं से दोनों की दोस्ती हुई। तब से हर सुख दुख में शेखर ने साथ दिया। शेखर ने पहल की तो हम दोनों जीवन साथी बन गए। आज हमारी शादी को तीन साल हो रहे हैं, हम आज भी दोस्त पहले और पति-पत्नी बाद में हैं। बेस्ट फ्रेंड की सही परिभाषा शेखर ने ही बताई है।
दोस्ती का मजबूत कांधा, हर पल सहयोग को तैयार
श्वेता वर्मा कहती हैं कि उनकी फ्रेंड बिंदेश्वरी रजक आज भी एक ऐसा कांधा है जो मेरे सुकून का और मन को प्रसन्न करने के लिए मौजूद रहता है। जब परिवारों में चाहे विंदेश्वरी के परिवार में कोई प्रॉब्लम हो या मेरे जीवन में किसी प्रकार की समस्या आती हो तो हम एक दूसरे के लिए आधी रात को भी मौजूद रहते हैं। आज हमारे बच्चे भी दोस्त बन गए हैं। बिंदेश्वरी के पापा और मेरे पापा भी मित्र थे। और हमने उनकी परंपरा को आगे बढ़ाया। जब हम सब मिलते हैं तो पता ही नहीं चलता कि हम दो परिवार हैं बल्कि दोनों ही एक संयुक्त परिवार नजर आते हैं। बिंदेश्वरी मुझे आगे बढ़ाने के लिए पढ़ाई के लिए प्रेरित करने के लिए हमेशा ही मोटिवेट करती रहती है। इसलिए मैं उसे मजबूत कांधा कहती हूं।
विस्वास की नींव है दोस्त और दोस्ती
जबलपुर में आज भी मेरा एक दोस्त है जिससे में 1974 में मिला था।मनोज शर्मा जो 1974 कॉलेज के समय से आज तक हम दोनों की दोस्ती में कोई अंतर नहीं आया।आज भी कभी- कभी सदर कॉफी हाउस जाकर बैठकर पुरानी यादों को ताज़ा करते है।हमारी दोस्ती में सॉरी और थैंक्यू की जगह न कभी थी और आज भी नहीं है।एक दूसरे के साथ दुख सुख में बिना कोई सवाल किए खड़े रहते थे और आज भी रहते है।
एक बार मुझे किसी से भोपाल में रात 10 बजे तक जरूर मिलना था और खबर शाम 4बजे मिली। मैंने मनोज को फोन किया एक दिन की तैयारी तुरंत कर चलना है। मंै 15 मिनट में तेरे घर आ रहा हूँ। उसने ये नहीं पूछा कि कहाँ जाना है क्यों जाना है। 15 मिनट बाद मनोज मैं भोपाल रवाना हो गये। समय से पहुंचे जिससे मिलना था मिले। होटल में रात रुके सुबह वापस जबलपुर वापस लौट गए। मनोज ने मुझसे कोई सवाल नहीं किया कि किसे मिले क्या काम था। ये हमारी दोस्ती की मिसाल थी। इसी प्रकार एक दिन उसने मुझसे कहा अपनी कार दो कही जाना है। मैने गाड़ी की चाबी दी वो लेकर चल गया।दो दिन बाद गाड़ी मेरे घर छोड़ गया।मैंने आज तक नहीं पूछा कि कहाँ गया था।क्या काम आ पड़ा था। तो ऐसी है हमारी 46 साल पुरानी दोस्ती।मुझे या उसे मेरी जरूरत होगी ,तो उसे वैसे ही एक दूसरे के लिए खड़े रहेंगे। ये दोस्ती निस्वार्थ है और विश्वास इसकी नींव है।