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जबलपुर

#Attari Special: पाक की सरहद दिखा देगी ये ट्रेन

जानिए वो तीन कारण जिससे जबलपुर के लिए अहम साबित हुई अटारी स्पेशल ट्रेन

जबलपुरApr 05, 2016 / 05:54 pm

awkash garg

Attari Special Train jabalpur

Attari Special Train jabalpur

जबलपुर। जबलपुरवासियों के लिए मंगलवार की सुबह इतिहास के नए अध्याय की शुरुआत हुई। क्षेत्र के सांसद ने हरी झंडी दिखाकर धार्मिक यात्रा, पर्यटन और सुरक्षा की दिशा में महत्वपूर्ण अटारी स्पेशल ट्रेन को रवाना किया। यह ट्रेन जबलपुर से पाक से सटे अटारी बॉर्डर तक जाने वाली यह ट्रेन तकरीबन 26 घंटे में सफर पूरी करेगी। जबलपुर से रवाना होकर 14 स्टेशनों के स्टॉपेज के बाद देश के अंतिम छोर में पहुंचने वाली इस ट्रेन को लेकर पंजाबी समुदाय के लोगों में खासा उत्साह है। यह ट्रेन नीचे दिए गए इन तीन कारणों से अत्यंत महत्वपूर्ण है, जिसके लिए लंबे समय से क्षेत्रवासी प्रतीक्षारत रहे हैं। आइए हम बताते हैं वो तीन लाभ जो इस ट्रेन के जरिए लोगों को सुलभ हुई है।

1. धार्मिक यात्रा की दृष्टि से –
अटारी स्पेशल ट्रेन धार्मिक यात्रा की दृष्टि से महत्वपूर्ण साबित होगी। जबलपुर शहर में ही 50 हजार से अधिक सिक्ख संगत के लोग रहते हैं। अमृतसर के स्वर्ण मंदिर आवागमन के लिए यह ट्रेन मील का पत्थर साबित होगी। सरदार स्वर्णजीत ंसिंह के अनुसार पहले तक समाज के लोगों को अमृतसर की यात्रा कटनी या इटारसी से तय करनी पड़ती थी।

2. पर्यटन की दृष्टि से –
अटारी बॉर्डर (पूर्व का वाघा बॉर्डर) देश के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। अटारी रेलवे स्टेशन से महज 3-5 किमी की दूरी पर अटारी बॉर्डर पहुंचा जा सकता है। पाकिस्तान से सड़क मार्ग पर संपर्क का यह एक अहम रास्ता है। यहां आकर्षक परेड़ देखने के लिए भी बड़ी संख्या में लोग जाते हैं, जिन्हें इस ट्रेन के जरिए अब काफी सहूलियत मिलेगी।

3. सुरक्षा की दृष्टि से –
जबलपुर छावनी, भारतीय सेना के लिए अहम है। यहां आयुध निर्माणी के साथ सेना के कैंप भी हैं। इस दृष्टि से जबलपुर में सेवारत सेना के जवानों को भी अमृतसर और अटारी आवागमन में सुविधा मिलेगी। इसके अलावा बॉर्डर से सेना का संपर्क भी और अधिक मजबूत हो सकेगा।

वाघा बॉर्डर नहीं, कहिए अटारी जाना है
भारत-पाक सीमा पर स्थित ऐतिहासिक वाघा बॉर्डर का जो हिस्सा भारत में आता है, उसका नाम बदलकर अटारी बॉर्डर किया जा चुका है। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि विभाजन के 60 वर्ष बाद पंजाब और भारत सरकार को ध्यान आया था कि दरअसल वाघा नाम का गांव तो पाकिस्तान के हिस्से में आता है जबकि इस सीमा क्षेत्र के भारत की ओर वाले हिस्से को अटारी कहा जाता है। इसी को ध्यान में रखते हुए अब यह निर्णय लिया गया है कि भारत में स्थित सीमा क्षेत्र को अटारी बॉर्डर कहा जाएगा। यह भी कहा गया है कि अटारी गांव महाराजा रंजीत सिंह की सिख वाहिनी के नामचीन सेनापति शाम सिंह अटारीवाला का जन्म स्थान है इसलिए इस नाम का ऐतिहासिक महत्व भी है। 

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