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कोरबा

जब टूट गया विश्वास, तो ग्रामीणों ने लैंको के बाहर किया प्रदर्शन, वादाखिलाफी का लगाया आरोप

जमीन अधिग्रहण के सात साल बाद भी पुनर्वास और नौकरी नहीं मिलने नाराज ग्रामीण लैंको के बाहर धरने पर बैठ गए। कंपनी के खिलाफ नारेबाजी की।

कोरबाAug 22, 2017 / 10:00 am

Shiv Singh

जब टूट गया विश्वास, तो ग्रामीणों ने लैंको के बाहर किया प्रदर्शन, वादाखिलाफी का लगाया आरोप

लैंको गेट के पास धरने पर बैठे भू विस्थापित।

कोरबा. जमीन अधिग्रहण के सात साल बाद भी पुनर्वास और नौकरी नहीं मिलने नाराज ग्रामीण लैंको के बाहर धरने पर बैठ गए। कंपनी के खिलाफ नारेबाजी की। प्रबंधन पर वादा खिलाफी का आरोप लगाया।
सोमवार सुबह लैंको संयंत्र से प्रभावित ग्राम खोड्डल और इसके आसपास स्थित अन्य गांव के लोग बड़ी संख्या में संयंत्र के गेट नंबर-एक पर एकत्र हुए। गेट के सामने धरना बैठ गए। कंपनी के खिलाफ नारेबाजी की। बताया कि साल २०१० में लैंको प्रबंधन ने तीन और चार नंबर यूनिट निर्माण के लिए ग्राम खोड्डल और इसके आसपास स्थित जमीन अधिग्रहित की थी। पुनर्वास नीति के अनुसार ग्रामीणों को दो साल के भीतर रोजगार सहित अन्य सुविधाएं मिलनी थी। साढ़े सात साल गुजर गए। लेकिन कंपनी ने रोजगार और नौकरी की व्यवस्था नहीं की। प्रशासन की मिली भगत से उनकी जमीन छीन ली। जमीन गवां चुके ग्रामीण नौकरी और पुनर्वास की मांग कर रहे थे। आंदोलन की सूचना पर कोरबा एसडीएम एनपी नरोजी, सीएसपी सुरेन्द्र साय पैकरा और तहसीलदार सहित अन्य अधिकारी पहुंचे। प्रशासन की उपस्थिति में लैंको प्रबंधन ने ग्रामीणों की मांग पूरी करने का वादा किया। बातचीत के दौरान लैंको के संजय कुमार सिंह, रानू नायक और वाई बालाकृष्णन उपस्थित थे। ग्रामीण लौट गए। दोपहर करीब तीन बजे गेट नंबर-१ से श्रमिकों का आना जाना शुरू हुआ।
24 को होगी बैठक- विवाद को सुलझाने प्रशासन ने २४ अगस्त को एक बैठक बुलाइ है। इसमें लैंको प्रबंधन की उपस्थिति में ग्रामीणों की मांग पर चर्चा होगी।
1759 खातेदार की जमीन गई- लैंको ने तीन और चार नंबर यूनिट बिस्तार के लिए ग्राम खोड्डल, पताढ़ी, पहंदा, सरगबुंदिया, संडैल व ढनढनी के लगभग 1759 खातेदारों की भूमि अधिग्रहित की गई है।
ये हुआ असर- आंदोलन से संयंत्र के भीतर मजदूर नहीं जा सके। सोमवार को वार्षिक रख रखाव के लिए संयंत्र की मरम्मत शुरू होने वाली थी। इसके लिए बाहर से बड़ी संख्या में मजदूर बुलाए गए थे। लेकिन काम शुरू नहीं हो सका। सड़क मार्ग से संयंत्र तक होने वाली कोयला आपूर्ति पर भी असर पड़ा। चांपा- कोरबा मार्ग पर संयंत्र के समीप करीब एक किलोमीटर तक सड़क किनारे गाडिय़ा खड़ी हो गई थी।

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