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पिछले साल ही कंपनी को बेचने की कोशिश में थी सरकार
गौरतलब है कि पिछले साल ही सरकार अपने विनिवेश ( disinvestment ) प्रोग्राम के तहत पवनहंस को बेचने की कोशिश की थी। गत दिसंबर 2018 में ही एअर इंडिया ( air india ) के साथ-साथ पवनहंस की भी स्टेक बेचने के लिए सरकार प्रयास में थी। 46 हेलिकॉप्टर की फ्लीट वाली पवनहंस में सरकार की 51 फीसदी की हिस्सेदारी है। वहीं, सरकारी तेल कंपनी ओएनजीसी की 49 फीसदी की हिस्सेदारी है। ओएनजीसी ( ONGC ) ने पवनहंस में अतिरिक्त स्टेक खरीदने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है। एसबीआई कैपिटल सरकार को बिडिंग प्रक्रिया के लिए सलाह दे रही थी। अब कंपनी पर इस वित्तीय संकट के बाद कर्मचारियों को अपने जीवनयापन व जरूरी खर्चों की चिंता सताने लगी है। कर्मचारियों का कहना है कि अगर कंपनी की पॉलिसी गलत रही तो इसमें उनकी क्या गलती है।? कंपनी डूबने की स्थित में उनका क्या होगा?
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माली हालत खराब होने के पीछे क्या है वजह
कंपनी की माली हालत खराब होने के पीछे कुछ जानकारों का कहना है कि पवनहंस ने करीब 125 करोड़ रुपए लगाकर दिल्ली में रोहिणी हेलिपोर्ट बनाने के लिए खर्च किया था। शुरुआती दिनों में तो यह हेलिपोर्ट अच्छा चला, लेकिन बाद में उसे बंद कर दिया गया। इस हेलिपोर्ट से कंपनी को एक रुपए की कमाई नहीं हो सकी। अब कंपनी खुद को कंगाल होने से बचने के लिए कॉस्ट कटिंग पर जोर दे रही है। कॉस्ट कटिंग के तहत कर्मचारियों को अब ओवरटाइम का पैसा नहीं दिया जा रहा। कंपनी ने कहा है कि ऐसा देखने में आया है कि जो कर्मचारी ओवरटाइम करते हैं, वे अपने वास्तविक ड्यूटी टाइम में लापरवाही बरतते हैं। कंपनी ने केवल टेक्निकल स्टाफ को ही ओवरटाइम करने की अनुमति दी है।
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सैलरी देने के लिए फंड जुटाने में लगी कंपनी
कंपनी ने कर्मचारियों को अप्रैल माह में सैलरी स्थगित करने के बारे में एक सर्कुलर जारी करते हुए जानकारी दी है। कंपनी ने अपने सर्कुलर में साफ कर दिया है कि चूंकि कंपनी घाटे से जूझ रही है, इसलिए अप्रैल माह की सैलरी रोकी गई है। कंपनी पर 230 करोड़ रुपए के अतिरिक्त अन्या देनदारियां भी हैं। कंपनी की प्रबंधकों को इस बात का डर है कि आने वाले दिनों में कंपनी की हालत और भी खराब हो सकती है। हालांकि, कंपनी ने अपने कर्मचारियों को आश्वासन दिया है कि वो फंड जुटाने का प्रयास कर रही है ताकि कर्मचारियों की बाकी सैलरी को दिया जा सके।
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