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वित्त वर्ष 2019, एविएशन सेक्टर के लिए यू-टर्न जैसा रहा है जिसे वित्त वर्ष 2018 में भारी मुनाफे के बाद अब बड़े नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। इन कंपनियों को बड़ी मात्रा में पूंजी की आवश्यकता है। हाल ही में अस्थायी रूप से बंद हुए जेट एयरवेज ( Jet Airways ) पर 15,000 करोड़ रुपए का कर्ज है और 15,000 से अधिक कर्मचारियों को सैलरी नहीं मिली है। मौजूदा दौर में सबसे अधिक नाजूक हालात जेट एयरवेज की है। सरकारी क्षेत्र की विमान कंपनी एअर इंडिया को भी चालू वित्त वर्ष में 9,000 करोड़ रुपए का भुगतान करना है।
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हाल ही में गोएयर ( GoAir ) ने 48 में से 10 विमानों को खड़ा कर दिया है। कंपनी में 15 उच्च अधिकारियों का पद खाली है, जिसमें कंपनी के सीईओ का पद भी है। इंडिगो और स्पाइसजेट ( SpiceJet ) , दो और विमान कंपनियां है जो तकनीकी खामियों का सामना कर रही हैं। सर्विस में आने के बाद ही प्रैट & व्हीटनी के टर्बो इंजन में खामियां सामने आई है, जो एयरबस A320Neo को पावर करती है। इसी वजह से पिछले साल कई विमान कंपनियों को खड़ा करना पड़ा था। पिछले सप्ताह ही डायरेक्टर जनरल आॅफ सीविल एविएशन ( dgca ) ने कंपनी को सुरक्षा आॅडिट के लिए नोटिस भेजा है। वहीं, स्पाइसजेट की बात करें तो इसमें भी Boeing 737 Max विमानों के चलते परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। वर्तमान में कुल विमानो में इंडिगो के 72 विमान और गोयर के 30 विमान A320Neo विमान हैं। आज हम नजर डालते हैं कि और कौन से कारण हैं जिनकी वजह से आने वाला दिन देश के एविएशन सेक्टर के लिए चुनौतीपूर्ण रहने वाला है।
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ईंधन की कीमतें
भारतीय विमान कंपनियों के लिए उनके कुल खर्च का 40 फीसदी खर्च ईंधन खरीदने में चला जाता है। भारत में जेट ईंधन पर दुनियाभर में सबसे अधिक टैक्स लगता है। बीते 10 वर्षों में भारतीय विमान कंपनियों के मुनाफे और ईंधन के बारे में विश्लेषण करें तो प्रमुख तौर तीन बातें सामने आती हैं। साल 2013 की दिसंबर तिमाही में कंपनियों के मुनाफे में इजाफा हुआ और फिर साल 2015 के मार्च-अप्रैल तिमाही में घाटे का दौर रहा। 2016 के जनवरी-मार्च तिमाही में भी घाटे का एक और दौर देखने को मिला। इस साल अब तक जनवरी से मार्च माह के बीच एविएशन टर्बाइन ईंधन की कीमतों में करीब 9 फीसदी का इजाफा हो चुका है। भू-राजनीतिक परिस्थितियों और प्राइस सेंसिटीव मार्केट की झलक कंपनियों की मार्जिन पर दिखती रहेगी।
ऐसा भी नहीं हैं कि भारतीय लोग हवाई उड़ानों पर खर्च नहीं करते। गूगल एंड बेन कंपनी की एक हालिया रिपोर्ट से पता चलता है कि साल 2018 में भारतीय यात्रियों ने करीब 2 अरब बार घरेलू व अंतरराष्ट्रीय उड़ानें भरीं हैं। इस दौरान उन्होंने कुल 94 अरब डाॅलर यानी 6.5 लाख करोड़ रुपए खर्च किया है। इसमें से 2.52 लाख करोड़ रुपए केवल किराये के तौर पर खर्च किए गए हैं। साल 2018 में कुल ट्रांसपोर्ट खर्च में 51 फीसदी खर्च केवल हवाई यात्रा पर किया गया है।
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सरकार की उदासनीता
बीते एक दशक से भी अधिक समय से घरेलू विमान कंपनियां केंद्र सरकार से जेट ईंधन पर लगने वाले टैक्स को कम करने की मांग कर रही हैं। दुनियाभर के देशों के मुकाबले भारत में जेट ईंधन करीब 35-40 फीसदी महंगा है। यह केवल टैक्स की वजह से है। इस मामले से जुड़े एक जानकार का कहना है कि सरकार ने एविएशन बिजनेस के मौलिक बातोें का लगातार नजरअंदाज किया है। भारत एक प्राइस सेंसिटीव मार्केट है। अगर ईंधन की कीमतें कम होती है तो मौजूदा रेवेन्यू के हिसाब से भी इन कंपनियों को अधिक मुनाफा होगा। सीविल एविएशन मंत्रालय और नियामक इन बातों पर कुछ खास ध्यान नहीं दिए हैं। एक उदाहरण के तौर पर देखें तो हाल ही में 737 मैक्स बोइंग इंजन के कई हादसे सामने आने के बाद भी भारत उन अंतिम देशों में रहा हैं जिन्होंने इस इंजन वाले विमानों को खड़ा करने का फैसला किया। हालांकि, मौजूदा सरकार ने देश के कई शहरो में छोटे एयरपोट को खोला है और इन रूटों पर विमानों को उड़ान भरने की नीलामी भी की है। स्पाइसजेट को इसमें सबसे अधिक फायदा हुआ है।
पायलटों की कमी
सिडनी की एक एविएशन कंस्ल्टेंट कंपनी ने अनुमान लगाया है कि भारत में कुल 7,963 पायलट हैं। आगामी 10 सालों में भारतीय विमान कंपनियों को कुल 17,164 पायलटों की नियुक्ति करने की जरूरत है। अनुमानित ग्रोथ को देखते हुए करीब 14 फीसदी पायलटों की कमी होगी। ऐसे में कंपनियों पर इनके भुगतान का भी बोझ बढ़ेगा। ईंधन के बाद विमान कंपनियों को सबसे अधिक अपने कर्मचारियों के वेतन पर खर्च करना पड़ता है। कुल मिलाकर विमानों और क्रु की संख्या में गैप बढ़ते हुए दिखाई दे रहा है।