गाँवों में जहाँ घर-घर के सामने से ढोलक और फाग गीतों को गाते हुए लोग रंग उड़ाते हुए गुजरते हैं वहीँ शहरों में निकलने वाली गेर भी इन्ही रैलियों का वृहद स्वरुप होती है। इंदौर में भी होली को लेकर इन्दोरियों का एक अलग ही मानस बना हुआ है। वे होली के दिन सुबह से राजवाड़ा पर एकत्रित होकर एक साथ गुलाल लगाने अपने सगे-सम्बन्धियों के घर निकल पड़ते हैं। इंदौर की खास बात ये है कि यहाँ लोग त्यौहारों के दिन दूरियों के बारे में नहीं सोचते। चाहे कोई विजयनगर भी रहता हो,होली खेलने राजवाड़ा तक और अपनों से मिलने और उन्हें रंगने राउ-रंगवासा तक पहुँच जाते हैं।
इंदौर की एक खासियत ये भी है कि यहाँ होली से ज्यादा 5 दिन बाद मनाई जाने वाली रंगपंचमी का महत्त्व है। राजवाड़ा से निकलने वाली गेर में हजारों की संख्या में शहरवासी शामिल होते हैं। रामराज हवा में उड़ रही होती है और सड़कों पर आम जनता रंगो से सराबोर होती है। जैसे होली पर लोग परिवार सहित बड़ों के आशीर्वाद लेने और साथियों से मिलने के लिए एक दूसरे के घर जाते हैं,लेकिन जिनसे मुलाक़ात नहीं हो पाती,5 दिन बाद इंदौर में वे लोग भी रंगपंचमी की गेर में निश्चित तौर पर मिल जाते हैं।
होली के दिन सडकों पर बिखरे केमिकल वाले रंग,फुट चुके गुब्बारे,पॉलीथीन की बॉल्स और व्यर्थ बहता पानी किसी भी शहर के लिए शायद आम बात होगी,लेकिन इंदौर की सड़कें इस रूढ़िवादी मापदंडो से परे साफ़-सुथरी और स्वच्छ दिखाई दी। हर बार की तरह कम पानी बहाने के आव्हान को मानते हुए शहर में इस बार वाकई पिछले सालों की अपेक्षा पानी की बर्बादी कम हुई। इंदौर ने होली पर भी अपने नंबर वन होने और एक आदर्श शहर होने का परिचय दिया है।