बच्चों के उज्जवल भविष्य को बनाने के लिए दिन-रात मेहनत करने वाली मां ने कभी नहीं सोचा होगा कि मामूली बात पर इकलौता बेटा फांसी लगाकर जान दे देगा। बेटे के खौफनाक कदम से मां-पिता का रो-रोकर बुरा हाल है। मां की पथराई आंखें बेटे को हर जगह तलाश रही है। घटना से आहत परिवार के सदस्य उन्हें ढांढस बंधा रहे हैं। घटना ने कई परिवार की चिंता भी बढ़ा दी है। पुलिस घटना से जुड़े तथ्यों की जांच में जुट गई है। अब तक की जांच में मां के मोबाइल इस्तेमाल करने से मना करने पर बच्चे द्वारा खुदकुशी करने की बात सामने आई है।
पुलिस के मुताबिक, बुधवार शाम सूचना मिली कि नगीन नगर निवासी विनय (16) पिता दयाशंकर पाल ने फांसी लगा कर जान दे दी है। गुरुवार को पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने मर्ग कायम कर शव परिवार को सौंप दिया। परिवार मूल रूप से उत्तर प्रदेश का रहने वाला है, जो बालक के शव को लेकर गांव निकल गया है।
बेटे का मोबाइल साथ लेकर गई मां तो हो गया नाराज
परिजन सुनीता पाल ने बताया, विनय पढ़ाई में काफी होशियार था। हर साल क्लास में प्रथम आता था। उसकी 11वीं की परीक्षा चल रही थी। इसी वजह से मां काम पर जाते वक्त उसका मोबाइल साथ लेकर चली गई थी तथा कहकर गई थी कि मोबाइल घर पर रहेगा तो पढ़ाई नहीं करेगा। जाने से पहले दोनों ने साथ में खाना खाया, उसके बाद मां काम के लिए निकली। विनय के पिता दयाशंकर जेसीबी मशीन चालक हैं और मां सिलाई का काम करने कारखाने पर जाती हैं। विनय की बड़ी बहन 12वीं परीक्षा की तैयारी के लिए कोचिंग जाती थी। सुनीता पाल के मुताबिक, मां-बेटे कुछ दिन पहले ही परिवार में गमी होने के कारण गांव से वापस लौटे थे। इसी वजह से मां को विनय की पढ़ाई की चिंता सता रही थी। परीक्षा होने के कारण जाते वक्त विनय का मोबाइल साथ लेकर गई थी। जब काम से शाम को करीब 6 बजे आकर देखा तो बेटे ने घर का दरवाजा नहीं खोला। कमरे से टीवी की तेज आवाज आ रही थी। काफी देर तक जब विनय ने दरवाजा नहीं खोला। तब जाकर पड़ोसियों की मदद दरवाजा तोड़कर देखा तो बेटा फांसी के फंदे पर झूल रहा था।
एक्सपर्ट पुनर्वास मनोवैज्ञानिक माया बोहरा बताते हैं कि तनाव, अवसाद या आवेश के कारण आत्महत्या की घटनाएं काफी बढ़ रही हैं। इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए परिवार को सतर्क रहना होगा। खासकर तब जब बच्चे गुमसुम के साथ अत्यधिक रोना या ज्यादा गुस्सा करने लगे। यह सोचने लगे कि मेरा कोई वजूद नहीं है। मेरा कुछ नहीं हो सकता है। किसी से मदद की उम्मीद नहीं होना या कोई बात उन्हें मन से कचोट रही हो। ऐसे में बालकों से खुलकर बात करें या तुरंत किसी प्रोफेशनल से मदद लेकर इन घटनाओं को रोका जा सकता है।